समय तो अपनी गति से चलता रहता है। दिन बदलते है, साल गुजरते हैं और सदियां इतिहास के पन्नों में सिमट जाती हैं। बीसवीं सदी भी अब इतिहास बन चुकी है और 21वीं सदी शुरू हो गयी है। ऐसे अवसर पर थोड़ा ठहरकर आत्मावलोकन करना और शिक्षा की गति व उसके विभिन्न आयामों पर एक समालोचक दृष्टि डालना आवश्यक लगता हैं। शिक्षा मानवीय विकास का प्रभावशाली साधन है। मानव की सभी कृतियाँ उसके द्वारा प्राप्त शिक्षा पर निर्भर करती है। यहीं नहीं अपितु व्यक्ति व समाज में एकात्म भाव की सृष्टि शिक्षा के माध्यम से ही होती हैं, शिक्षा समाज की स्वयंभू स्थिति की संवाहिका है। शिक्षा के द्वारा व्यक्ति-व्यक्ति के साथ एकात्म होता है तथा अपने व्यक्तित्व की साधना के मार्ग तथा लक्ष्य को पाता हैं। शिक्षा के सहारे मानव की अद्यतन संचित ज्ञान निधि हस्तांतरित होती है, इसी पूँजी को लेकर मानव समष्टि को अपना योगदान करता है। यदि शिक्षा न हो तो समाज का जन्म ही न हो, मनुष्य अपनी बुद्धि का सही व समुचित तो क्या किंचित भी उपयोग करने का अवसर ही न पाएं। इसीलिए शिक्षा हमारी समस्या है। चूँकि किसी देश का वर्तमान और भविष्य वहाँ की शिक्षा व्यवस्था से ही बनता बिगड़ता है अतः जितनी तेजी से शिक्षा पद्धति में परिवर्तन लाना संभव हो उतनी तेजी बरतने की आवश्यकता हैं। हमारा दृढ़ विश्वास है कि प्रत्येक बालक संसार का प्रकाश है। इसके विपरीत यदि वह संसार का प्रकाश नहीं बनता है, तो वह संसार में अंधकार को फैलाने का कारण बनता है। इसलिए आज की उद्देश्यहीन शिक्षा को उद्देश्यपूर्ण बनाने की दिशा में सबसे अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। महर्षि अरविन्द ने सच्ची राष्ट्रीय शिक्षा की विवेचना करते हुए कहा है कि ‘सच्ची‘ और ‘सजीव‘ शिक्षा केवल वहीं कही जा सकती है जो मनुष्य की इस तरह सहायता करे कि उसके अन्दर जो भी शक्ति सामर्थ्य निहित है वह बाहर अभिव्यक्त होकर उसके जीवन में अपना पूरा लाभ प्रदान करे तथा मनुष्य जीवन का जो भी संपूर्ण उद्देश्य और संभावना है उसकी संसिद्धि के लिए उसें तैयार करे। महात्मा गांधी ने ठीक ही कहा है कि- ‘‘जो शिक्षा चित्त की शुद्धि न करे, मन व इन्द्रियों को वश में करना न सिखाए, निर्भयता व स्वावलम्बन पैदा न करे, निर्वाह का साधन न बनाए, उस शिक्षा में चाहे जितना जानकारी का खजाना हो, तार्किक कुशलता व भाषा पाण्डित्य मौजूद हो, वह सच्ची शिक्षा नहीं।‘‘ शिक्षा ही राष्ट्र का मर्मस्थल है। यहीं राष्ट्र की रीढ़ है। जिसके ऊपर राष्ट्ररूपी इमारत खड़ी है। शिक्षा द्वारा बालक की अन्तर्निहित शक्तियों का सर्वागीण विकास होता है। जिससे वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके। शिक्षा सभी विकास प्रक्रियाओं विशेषकर मानव विकास की कुंजी है। सच कहा जाये तो शिक्षा किसी भी विकासोन्मुख समाज और देश की एक मौलिक जरूरत हैं। समाज एवं देश में समयानुसार परिवर्तन होते रहते है। इसलिए शिक्षा में तथा इसके उद्देश्यों में भी समयानुसार परिवर्तन होना स्वाभाविक है। परिवर्तन ही समय की माँग होती है। बिना परिवर्तन के विकास सम्भव नहीं है। हालांकि ‘‘दुनिया परिवर्तन का विरोध करती है, पर यही एकमात्र जरिया है विकास लाने का‘‘।
नई शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा की पहुँच, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य, जन जन तक पहुंच और उत्तरदायित्व जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया गया हैं। नई शिक्षा नीति के निर्माण के लिये जून 2017 में पूर्व इसरो (ISRO) प्रमुख डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था, इस समिति ने मई 2019 में ‘नई शिक्षा नीति का मसौदा' प्रस्तुत किया था। ‘नई शिक्षा नीति (NEP) 2020' वर्ष 1968 और वर्ष 1986 (जिसे 1992 में संशोधित किया गया था) के बाद स्वतंत्र भारत की तीसरी शिक्षा नीति होगी। नई शिक्षा नीति में वर्तमान में सक्रिय 10+2 के शैक्षिक मॉडल के स्थान पर शैक्षिक पाठ्यक्रम को 5+3+3+4 प्रणाली के आधार पर विभाजित करने की बात कहीं गई हैं। तकनीकी शिक्षा, भाषायी बाध्यताओं को दूर करने, दिव्यांग विद्यार्थियों के लिये शिक्षा को सुगम बनाने आदि के लिये तकनीकी के प्रयोग को बढ़ावा देने पर बल दिया गया हैं। शिक्षा प्रणाली को पहले से ज्यादा टेक्निकल और विशुद्ध बनाने का प्रयास किया गया हैं। शिक्षा कंटेंट नहीं कांसेप्ट आधारित होगी। इस शिक्षा नीति में विद्यार्थियों में रचनात्मक सोच, तार्किक निर्णय और नवाचार की भावना को प्रोत्साहित करने पर बल दिया गया हैं। यह बदलाव देश को उज्जवल भविष्य देगा और इसे समृद्धि की ओर ले जाएगा।
शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि शिक्षा नीति बनाने के लिए देश की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 6600 ब्लॉक और 676 जिलों से सलाह ली गई। शिक्षाविदों, अध्यापकों, जनप्रतिनिधियों, अभिभावकों और छात्रों तक के दो लाख से अधिक सुझावों पर मंथन कर जन आकांक्षाओं के अनुरूप NEP को साकार किया गया। NEP 2020 की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया हैं। यह सर्वथा उचित हैं। इसमें GDP को 4.43 से बढ़ाकर छह फीसद करने का निर्णय से व्यापक सुधार होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इससे छात्र-छात्राओं को बड़ी राहत भी मिलने की उम्मीद हैं। केंद्र सरकार द्वारा मंजूर की गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से पूर्व देश में मुख्य रूप से सिर्फ दो ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई थी। स्वतंत्रता के बाद पहली बार 1968 में पहली शिक्षा नीति की घोषणा की गई। यह कोठारी कमीशन (1964-1966) की सिफारिशों पर आधारित थी। इस नीति को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने लागू किया था। इसका मुख्य उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना और देश के सभी नागरिकों को शिक्षा मुहैया कराना था। बाद के वर्षां में देश की शिक्षा नीति की समीक्षा की गई। वहीं देश की दूसरी ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति मई 1986‘ में मंजूर की गई। जिसे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार लेकर आई थी। इसमें कंप्यूटर और पुस्तकालय जैसे संसाधनों को जुटाने पर जोर दिया गया। वहीं इस नीति को 1992 में पीवी नरसिंह राव सरकार ने संशोधित किया। अब तीसरी ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020‘ 21वीं सदी की पहली शिक्षा नीति है और यह 34 वर्ष पुरानी ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 1986‘ को प्रतिस्थापित करेगी।
1. पहली शिक्षा नीति 1968 में आई। यह कोठारी आयोग (1964-1966) की सिफारिशों पर आधारित थी। 2. इसमें शिक्षा को राष्ट्रीय महत्व का विषय घोषित किया गया। 3. 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा के साथ शिक्षकों के बेहतर प्रशिक्षण और योग्यता का लक्ष्य रखा गया। 4. संस्कृति और विरासत के अनिवार्य हिस्से के रूप में संस्कृत भाषा के शिक्षण को प्रोत्साहित किया गया। 5. इसमें व्यय के लिए बजट के 6 फीसद का लक्ष्य रखा गया। 6. माध्यमिक स्तर पर ‘त्रिभाषा सूत्र‘ को लागू किया गया।
1. इसे असमानताओं को दूर करने के लिए जाना जाता हैं। इसका उद्देश्य विशेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति समुदायों के लिए शैक्षिक अवसर की बराबरी पर विशेष जोर देना था। 2. संस्थानों को आधारभूत संरचना जैसे कंप्यूटर, पुस्तकालय जैसे संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे। छात्रों के लिए आवास विशेष रूप से छात्राओं को आवास उपलब्ध कराए जाएंगे।। 3. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ‘ओपन यूनिवर्सिटी' प्रणाली का विस्तार। 4. गैर सरकारी संगठनों को देश में शिक्षा की सुविधा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। 5. महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित ‘ग्रामीण विश्वविद्यालय' मॉडल निर्माण का आहृान किया गया। इसका उद्देश्य ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना था।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में संशोधन के उद्देश्यों में सबसे प्रमुख उद्देश्य देश में व्यावसायिक और तकनीकी कार्यक्रमों में प्रवेश हेतु राष्ट्रीय स्तर पर एक आम प्रवेश परीक्षा का आयोजन करना था। इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE) और अखिलभारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (AIEEE) तथा राज्य स्तर के संस्थानों के लिए राज्य स्तरीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (SLEEE) निर्धारित की गई। इसने इस विधा के छात्रों के लिए काफी सहूलियत पेश की।
स्कूली शिक्षा का बदलेगा स्वरूप -स्कूली शिक्षा का 5+3+3+4 के तहत होगा नया पाठ्यक्रम व शैक्षणिक ढांचा, 10+2 के ढांचे को चार स्तर में बदला जाएगा।इनमें पहला बुनियादी स्तर होगा, जो पांच साल का होगा। प्रारंभिक स्तर और मध्य स्तर तीन-तीन साल का और माध्यमिक स्तर का चार साल का होगा। इनमें बुनियादी स्तर प्री-प्राइमरी से लेकर दूसरी कक्षा तक के लिए होगा। प्रारम्भिक स्तर कक्षा तीन से पांच, मध्य स्तर कक्षा छह से आठ और माध्यमिक स्तर शिक्षा नौ से 12 तक के लिए होगा। स्कूली शिक्षा के विनियमन, संचालन और अकादमिक मामलों के स्पष्ट प्रणाली बनेगी। इसके तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्वतंत्र स्टेट स्कूल स्टैंडड्रर्स अथारिटी (एसएसएसए) का गठन होगा।
बुनियादी स्तर (फाउंडेशन स्टेज) - नर्सरी, केजी व अपर-केजी नई नीति में पूरे पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचे को 5-3-3-4 के तहत चार हिस्सों में बांटा गया है। पहले पांच में फाउंडेशन वर्ग के तहत नर्सरी, केजी और अपर-केजी होंगे। इसमें तीन साल बच्चे आंगनबाड़ी या प्री-स्कूलिंग शिक्षा लेंगें और फिर पहली और दूसरी में पढ़ेगे। एनसीईआरटी के विशेष पाठ्यक्रम में एक्टिविटी आधारित लर्निंग पर फोकस। 3 से 8 साल तक बच्चे कवर होंगे। बच्चों के समग्र विकास पर ध्यान होगा। प्राथमिक स्तर (प्रीप्रेटरी स्टेज) - इसमें कक्षा तीसरी, चौथी व पांचवी दूसरे वर्ग में तीसरी, चौथी व पांचवी के छात्र शामिल होंगे। इसमें बच्चों को प्रयोगों के माध्यम से गणित, विज्ञान और कला आदि विषयों की पढ़ाई करवायी जाएगी। इसमें 8-11 आयु वर्ग के बच्चे शामिल होंगे। मिड-डे मील में अब नास्ता भी। मध्य स्तर (मिडिल स्टेज)- इस वर्ग में छठीं, सातवीं और आठवीं कक्षा होगी और 11-14 आयु वर्ग के छात्रों को शामिल किया जाएगा। इसमें विषय आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। छठी कक्षा से ही कौशल विकास कोर्स शुरू होंगे और अनिवार्य व्यावसायिक ट्रेनिंग व पढ़ाई होगी। इसमें दस दिन की लोकल क्राफ्ट की इंटर्नशिप करनी पड़ेगी। तीसरी, पांचवी और आठवीं कक्षा में संबंधित अथॉरिटी द्वारा परीक्षाओं का आयोजन किया जाएगा। माध्यमिक स्तर (सेकेंडरी स्टेज) - कक्षा नौ से 12 की पढ़ाई दो चरणों में होगी। इसमें विषयों का गहन अध्ययन कराया जाएगा। इस दौरान बोर्ड की तैयारी पर फोकस होगा। छात्रों को विषय चुनने की आजादी भी होगी। अपने विषय के साथ-साथ बहुविषयक जानकारियों को बढ़ावा दिया जाएगा। बोर्ड परीक्षा रट्टा के बजाय ज्ञान बढ़ाने पर आधारित हो, इसलिए पाठ्यक्रम कम किया जाएगा। 10वीं-12वीं की बोर्ड परीक्षाएं होती रहेंगी। बोर्ड परीक्षाएं वार्षिक, सेमेस्टर और मोडयूलर आधारित होंगी। ये दो भागों या दो तरह जैसे वस्तुनिष्ठ और व्याख्यात्मक भी हो सकती हैं।
विषयों के क्रिएटिव कॉम्बिनेशन के साथ छात्रों को बीच में विषय बदलने का मौका मिलेगा। विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से मिले क्रेडिट का लेखा-जोखा रखने के लिए डिजिटल स्तर पर एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट बनाया जाएगा। फाइनल डिग्री में इन क्रेडिट को जोड़ा जा सकेगा। सरकारी और निजी सभी उच्च शिक्षण संस्थानों पर एक ही तरह के नियम और मानक लागू होंगे। सभी विश्वविद्यालयों के लिए एक प्रवेश परीक्षा का ऑफर दिया जाएगा, जिससे छात्रों का समय और धन दोनों बचेगा। विधि, चिकित्सा कॉलेजों को छोड़ सभी उच्च शिक्षण संस्थान एक ही नियामक द्वारा संचालित होंगे। एमफिल को खत्म किया जाएगा। पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में एक साल के बाद पढ़ाई छोड़ने का विकल्प होगा। नई नीति से हर स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी। गुणवत्तायुक्त स्कूली और उच्च शिक्षा से रोजगार भी बढ़ेगा। इसीलिए छठीं से व्यावसासिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण को जोड़ा गया हैं। इस नीति से देश की शिक्षा का स्वरूप पूरी तरह बदल जाएगा। हर स्तर पर इसमें बदलाव दिखेगा। नई नीति का उद्देश्य 2030 तक स्कूली शिक्षा से 100% सकल नामांकन अनुपात (GER) के साथ पूर्व-विद्यालय से माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा के सार्वभौमिकरण का लक्ष्य प्राप्त करना है। साथ ही स्कूल से दूर रह रहे लगभग 2 करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में वापस लाया जाएगा। NEP 2020 का लक्ष्य व्यावसायिक शिक्षा सहित उच्चतर शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को 26.3 प्रतिशत (2018) से बढ़ाकर 2035 तक 50 प्रतिशत करना हैं। उच्चतर शिक्षा संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएगी। अध्यापक शिक्षण के लिए एनसीईआरटी के परामर्श से, एनसीटीई के द्वारा ‘अध्यापक शिक्षण के लिए राष्ट्रीय पाठयक्रम ढांचे‘ का विकास किया जाएगा। वर्ष 2030 तक, शिक्षण कार्य करने के लिए कम से कम योग्यता 4 वर्षीय इंटीग्रेटेड बीएड डिग्री हो जाएगी। NEP 2020 में सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण और विकास पर जोर दिया गया हैं। इसके तहत पाली, फारसी और प्राकृत भाषाओं के लिए भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान(आईआईटीआई) की स्थापना होगी। गैर हिंदी भाषी राज्यों में भाषा विवाद खत्म करने के लिए 5वीं या राज्य चाहें तो 8वीं तक पढ़ाई मातृभाषा में हो सकेगी। उच्च शिक्षा में भी मातृभाषा में पढ़ाई जारी रख सकते हैं। विज्ञान समेत सभी विषयों की किताबें भारतीय भाषाओं में होगी। त्रिभाषा फार्मूला से भाषा चुनने का हक राज्यों को होगा। दरअसल भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, बल्कि बहुत गहरा सम्प्रत्यय है। प्रत्येक भाषा के साथ कोई विशिष्ट सभ्यता, संस्कृति और आत्मबोध अभिन्न रूप से जुड़ा होता है। अंग्रेजी अब सिर्फ एक विषय के तौर पर पढ़ाई जाएगी। दबाव कम करने के लिए कोर्स घटेगा तथा उच्च शिक्षण संस्थानों में संस्कृत और भाषा विभागों को मजबूत करने की सिफारिश की गई हैं। ऑनलाइन शिक्षा के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेट तैयार होगा, वर्चुअल लैब और डिजिटल लाइब्रेरी बनेंगी। सभी प्रवेश और प्रतियोगी परीक्षाएं नेशनल टेस्टिंग एजेंसी कराएगी। कंप्यूटर आधारित परीक्षा पर जोर रहेगा। भारतीय समेत शास्त्रीय भाषाओं में कोर्स उपलब्ध करने पर जोर रहेगा। संस्कृत की पढ़ाई करवाने पर सरकार आर्थिक रूप से मदद करेंगी।
नई शिक्षा नीति (NEP 2020) में उच्च शिक्षा की मौजूदा प्रणाली में भी आमूल-चूल सुधार किया गया है। इसके तहत धीरे-धीरे कॉलेजों के विश्वविद्यालय से संबद्ध होने की प्रणाली को खत्म कर उन्हें डिग्री देने वाला स्वायत्त संस्थान बनाया जाएगा। अगले 15 साल बाद कोई कॉलेज संबद्ध नहीं होगा, वह या तो स्वायत्त(ग्रेडेड ओटोनामी) होगा या फिर किसी विश्वविद्यालय के अधीन होगा। इसके साथ हीयूजीसी, एआईसीटीई, एनसीटीई की जगह उच्च शिक्षा को नियमित करने और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए ‘हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया‘ (एचईसीआई) का गठन किया जाएगा। यह आयोग कानून और मेडिकल शिक्षा को छोड़कर पूरी उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और नियमन की जिम्मेदारी संभालेगा। इसके तहत चार अलग-अलग स्वायत्त इकाइयां गुणवत्ता, नियमन, अनुदान और मान्यता के कामकाज को देखेंगी। एचईसीआई के चार स्वतंत्र अंग- विनियमन हेतु राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (एनएचईआरसी), मानक निर्धारण के लिए सामान्य शिक्षा परिषद (जीईसी), वित पोषण के लिए उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (एचईजीसी) और मान्यता के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (एनएसी) होगा। अब तक यूजीसी, एआईसीटीई, एसीटीई थे। एचईसीआई के नियम सभी सरकारी और निजी शिक्षण संस्थाओं में लागू होगें। वैज्ञानिक व सामाजिक अनुसंधानों को नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाकर बढ़ावा दिया जाएगा। गुणवत्ता सुनिश्चित करने के नाम पर सालाना इंस्पेक्शन की इजाजत नहीं होगी और पूरी प्रणाली फेसलेस और ऑनलाइन काम करेगी। उच्च शिक्षा के स्तर पर NEP 2020 कई नई संभावनाओं के साथ आई हैं। स्ट्रीम का लचीलापन अर्थात् विज्ञान, कॉमर्स या मानविकी के छात्रों को एक-दूसरे के विषयों को पढ़ने की छूट अथवा वोकेशनल शिक्षा के समावेश के साथ-साथ बैचलर प्रोग्राम की एक बड़ी विशेषता होगी मल्टी-एंट्री और मल्टी-एग्जिट। ग्रेजुएट कोर्स में तीन साल के बाद एग्जिट की सुविधा मिलेगी। पांच साल का संयुक्त ग्रेजुएट-मास्टर कोर्स लाया जाएगा। और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में एक साल के बाद पढ़ाई छोड़ने का विकल्प होगा। नेशनल मेंटरिंग प्लान के जरिये शिक्षकों का उन्नयन किया जाएगा। जो छात्र शोध के क्षेत्र में जाना चाहते हैं उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा। ऐसे छात्र एक साल के परास्नातक (पीजी) के साथ चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी या डीफिल में प्रवेश ले सकेंगे। वहीं, जो स्नातक के बाद नौकरी करना चाहते हैं उनकी पढ़ाई तीन साल में ही पूर्ण हो जाएगी। शोध को बढ़ावा देने और गुणवत्ता में सुधार के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की (एनआरएफ) की स्थापना होगी। इसका उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध संस्कृति को संक्षम बनाना होगा। जिसके दूरगामी परिणाम होंगे।
पहली बार डिग्री कोर्स में मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम लागू होगा। अब नई व्यवस्था (NEP 2020) के तहत स्नातक की पढ़ाई 3-4 साल की होगी। तीन वर्षीय डिग्री प्रोग्राम एक साल पूरा करने पर प्रमाण पत्र, दो साल पढ़ाई पर डिप्लोमा और तीन साल पूरे करने पर डिग्री मिलेगी। जबकि चार वर्षीय डिग्री प्रोग्राम बहुविषयक स्नातक कार्यक्रम होगा। यह उनके लिए जरूरी है जो आगे मास्टर्स या पी-एच.डी करना चाहते हैं। विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने ट्रांसफर ऑफ क्रेडिट की सुविधा के लिए एक अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट (Academic Bank of Credit-ABC) की स्थापना की जाएगी, जिससे अलग-अलग संस्थानों में विद्यार्थियों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सकें। NEP 2020 में लैंगिक समावेशन कोष और वंचित इलाकों तथा समूहों के लिए विशेष शिक्षा क्षेत्र की स्थापना पर जोर रहेगा। शिक्षा, मूल्यांकन, योजनाओं के निर्माण और प्रशासनिक क्षेत्र में तकनीकी के प्रयोग पर विचारों के स्वतंत्र आदान-प्रदान हेतु “राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच” (National Educational Technology Forum- NETF) नामक एक स्वायत्त निकाय की स्थापना की जाएगी। अब शिक्षा प्रणाली को पहले से ज्यादा टेक्निकल और विशुद्ध बनाने का प्रयास किया गया हैं। इससे विद्वता, अनुसंधान व नवोन्मेष के दौर में NEP 2020 से भारत जीवंत ज्ञान का केंद्र बनेगा। आज हमारे छात्र देश और समाज से जुड़ते हुए योग्य और क्षमतावान बनें, यही शिक्षा नीति में आमूल-चूल परिवर्तन की सबसे बड़ी पहचान होगी। शिक्षा केवल शिक्षित ही नहीं करती, अपितु राष्ट्र का निर्माण भी करती हैं। वह ऐसे चरित्र का निर्माण करती है, जो जीवन मूल्यों पर टिका हो, देश को समर्पित हो और मानवता एवं वैश्विक सोच से परिपूर्ण हो। इन सभी दिशाओं में वर्तमान शिक्षा पुनर्संगठन अविलम्ब करना जरूरी था। यह शिक्षा नीति एक मील का पत्थर साबित होगी। लेकिन कुछ बातों की अस्पष्टता उसे जल्द दूर करने की दरकार होगीं। पाठ्यक्रम कैसे बदलेंगें, उनका आधार क्या होगा, स्कूलों में ज्यादा नामांकन बढ़ाने का लक्ष्य हैं, इसे बिना निजी भागीदारी के कैसे पूरा किया जा सकेगा?इसमें पहली समस्या तो जाहिर तौर पर धनराशि के अभाव की है। पैसों का इंतजाम कैसे होगा, इस पर नई नीति चुप हैं। इसमें सिर्फ मान लिया गया है कि बजट का इंतजाम हो जाएगा। नई शिक्षा नीति (NEP 2020) से इंस्पेक्टर राज के लौटने का भी एहसास होता हैं। इसमें उच्च शिक्षा के लिए एक ही नियामक संस्था की वकालत की गई हैं। किसी देश की शिक्षा प्रणाली की बुनियाद वहां के शिक्षक होते हैं। उनको प्रशिक्षित करने या नए मानदंड तय करने होंगे। उच्च शिक्षा के लिए गैर जरूरी बैरियर्स को हटाना होगा। दुनिया में सबसे युवा मानव संसाधन हमारे पास हैं। दुनिया के कई देशों की जितनी कुल आबादी है, उतने हमारे यहां हर साल ग्रेजुएट पैदा होते हैं। अगर हम अपनी नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के बूते इस अपार संपदा को सहेज और संवार सके तो निश्चित ही दुनिया भारत का जयगान करने पर विवश होगी।
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