‘पर्यटन’ शब्द स्वयं में कई आयाम समेटे हुए है। पर्यटन किसी के लिए रूचि का विषय हो सकता है साथ ही अन्य किसी के लिए लाभ प्राप्त करने का साधन सिद्ध होता है। पर्यटन की अवधारणा यात्रा, भ्रमण, आवास, प्रवास तथा संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है। यहां ऋषि, मुनि, साधु संत एक स्थान से दूसरे स्थान में भ्रमण एवं पर्यटन करते रहे हैं। यहाँ अतिथि देवोभव (अतिथि भगवान होता है) तथा ‘‘वसुधैव कुटुम्बम्’’ पूरा विश्व एक परिवार है, कि सांस्कृतिक परम्पराएँ विकसित हुई है। पर्यटन विकास को बढ़ावा देने वाली गतिविधि हैं यह मानव संसाधन विकास का भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। अब पर्यटकों को आकर्षित करने के मामले में केवल बड़े शहर ही आगे नहीं हैं, बल्कि अब सैलानी छोटे शहरों और गांवों की तरफ भी रुख करने लगे हैं। पर्यटन 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा उद्योग है। पर्यटन को निर्यात का दर्जा प्राप्त है।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एंजिल्स ने एक नियम प्रतिपादित किया था, जिसके अनुसार जैसे-जैसे किसी परिवार की आय बढ़ती है, उसका खाद्य पदार्थो पर व्यय कम होता जाता है और मनोरंजन पर व्यय बढ़ता जाता है। यह नियम पर्यटन को मानवीय व्यवहार की प्रक्रिया से जोड़ने का आधार प्रदान करता है क्योंकि पर्यटन मनोरंजन का ही दूसरा नाम है। प्रकृति में सर्वत्र व्याप्त अप्रतिम सौन्दर्य को निहारने, ईश्वर के सामीप्य और वात्सल्य को ग्रहण करने तथा जीवन में कुछ पल अपने लिए निकालकर स्वयं पर खर्च करने का नाम है पर्यटन, यह कुछ ही दिनों में कई वर्ष जी लेने की आकांक्षा है।
बुदेलखण्ड भारत का एक ऐसा भौगोलिक क्षेत्र है जिसनें भारत की सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखा है। जिसे न केवल संरचनात्मक एकता भौम्याकार की समानता और जलवायु की समता है वरन् इसके इतिहास, अर्थव्यवस्था और सामाजिकता का आधार भी एक ही है। वास्तव में समस्त बुन्देलखण्ड में सच्ची सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक एकता है। ऐसे पर्यटन स्थल जिसे हमें जानने की आवश्यकता है, पर रोशनी डालने का प्रयास किया जा रहा है। बुन्देलखण्ड एक आदर्श प्राचीन धरोहर से भरपूर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। विन्ध्य क्षेत्र अपनी विपुल भौगोलिक एवं सांस्कृतिक विरासत से युक्त है। अतः यहाँ कई प्राकृतिक पर्यटन स्थल एवं भौगालिक स्थल भी है। जिनमें खजुराहों एवं ओरक्षा विश्व भर के सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बने है। क्योंकि यहां की लालित्यपूर्ण, स्थापत्य कला देखने लायक है। वहीं दूसरी ओर अनेक प्राकृतिक, पुरातात्विक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्व के स्थल एवं धरोहर विद्यमान है। चारों और अपूर्व सौन्दर्य से भरा यह क्षेत्र प्रकृति प्रेमियों के लिए अपूर्व आनन्द का सृजनकर्ता हो सकता है। इस संदर्भ में मध्यप्रदेश के पर्यटन विकास निगम एवं संस्कृति विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वही पर्यटकों हेतु खजुराहो में आवास, परिवहन, आदि सुविधायें उपलब्ध कराकर भी किया जाता है। पर्यटन का विकास हमारी पारम्परिक सांस्कृतिक धरोहर व परम्परा के अनुसार है।
खुजराहो बुन्देलखण्ड क्षेत्र में चन्देलों के वैभव का प्रतीक, खुजराहो मंदिर अपनी बेहद खूबसूरत वास्तुकला और संस्कृति के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इन मंदिरों का निर्माण 9वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य महोवा के चन्देल शासकों ने करवाया था। इन मूर्तियों को देखने से स्पष्ट होता है, मानो मूर्तियाँ बोल रही हो। इन मंदिरों में आपको यहां की कला, संस्कृति और परंपराओं की झलक देखने को मिल सकती है। यहाँ के मंदिरों में कंदरिया महादेव मन्दिर, लक्ष्मण मंदिर तथा सूर्य मंदिर सर्वप्रमुख है। इनके पास में ही जैन मंदिर है, इन मंदिरों की भव्यता और उनके वास्तुकारों के भवन-निर्माण में निपुणता, उनकी सूक्ष्म पैठ और छेनी पर उनके असाधारण अधिकार का परिचय देती है। इन विश्वविख्यात मंदिरों में शिल्प-सौंदर्य का ऐसा बेजोड़़ खजाना है, जिसे दुनिया में अन्यत्र और कहीं नहीं देखा जा सकता। यहां की कला में जैन संस्कृति का वैभव, और भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। आजकल आगरा के बाद देश का दूसरा प्रमुख पर्यटन स्थल है जो विदेशियों को आकर्षित करता है। इस भूमि को प्रकृति ने विपुल भौगोलिक एवं सांस्कृतिक सम्प्रदायों से सम्पन्न कर रखा है। भव्य खण्डर, श्रेष्ठ कोटि के स्थापत्य एवं शिल्प का वैभव छिपाये मानव या इतिहास का एक विशाल ग्रन्थ है। जिस पर प्रत्येक विद्वान, पर्यटन प्रेमी एवं जिज्ञासु की दृष्टि अटक जाती है। इसी उत्कृष्टता के कारण ही इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया है। अगर ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाय तो जिस देश के लोग अधिक पर्यटन एवं भ्रमण किये है। वे देश आज अधिक विकसित है। इन पर्यटकों में कोलम्बस, वास्कोडिगामा, ह्वेनसांग, फहृयान आदि प्रमुख लोग है।
पर्यटन की अध्ययन पद्धति ऐतिहासिक, पुरातात्विक स्रोत, भौगोलिक सर्वेक्षण पर आधारित है। इसका विधितंत्रात्मक स्वरूप स्थानीय संसाधन, स्थानीय प्रबन्धन, क्षेत्रीय निरीक्षण एवं क्षेत्रीय अध्ययन विश्लेषण पर आधारित है। अपनी विशिष्ट भू-आकारिकी एवं पारिस्थतिकी के कारण यहां संसाधन विकास के अच्छे अवसर विद्यमान है। निश्चय ही पर्यटन आधुनिक युग का सर्वाधिक लाभप्रद उद्योग है। वास्तव में पर्यटन एकांकी नहीं है। यातायात, होटल उद्योग, भेषज उद्योग, स्थानीय पाक कला, भाषा, पहनावा संस्कृति इसके उपांग है। ये सभी पर्यटन के दौरान लाभान्वित होने वाले अवयव हैं। भारत की विविधता प्रत्येक प्रकार के पर्यटन को समृद्ध बनाती है। इसी विविधता की चर्चा रस्किंन बांड ने की है। खुजराहो (Khajuraho) क्षेत्र, नैसर्गिक सौन्दर्य सम्पन्न एक ऐसा भू-भाग है जो पर्यटकों (Tourists) को सहज ही आकर्षित कर लेता हैं अतः यहां विद्यमान भू-दृश्यों, धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व के स्थलों का उपयोग पर्यटन विकास के परिप्रेक्ष्य में किया जा सकता है तथा क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को गति प्रदान की जा सकती है।
इन सभी विविधताओं के बावजूद पर्यटन भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण घटक है। न केवल इससे राज्य को बड़ी मात्रा में बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सहायता मिलेगी, बल्कि जन-साधारण के लिए प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से रोजगार के अवसर भी सृजित होगें, साथ ही साथ होटल, परिवहन, हस्तकला व हथकरघा उद्योगों के विकास को भी प्रोत्साहन मिलेगा, इस उद्योग द्वारा खजुराहो (Khajuraho) जैसे पिछड़े क्षेत्रों में न केवल आर्थिक विकास को गति दी जा सकती है बल्कि क्षेत्र की बेरोजगारी का भी काफी हद तक निवारण किया जा सकता है। इससे न केवल आर्थिक विकास को बल्कि मानसिक तथा पर्यावरण विकास को भी बल मिलता है। जिससे देश में स्वच्छ वातावरण का निर्माण होता हैं आवश्यकता बस इस बात की है कि पर्यटन का उद्योग के रूप में यहाँ तेजी से विकास किया जाय न केवल पर्यटन की विविध योजनाओं से बल्कि इस क्षेत्र में उद्यमियों के अधिकाधिक प्रवेश को प्रोत्साहन से भी इसका विकास किया जाय। निःसंदेह पर्यटन ही एक ऐसा उद्योग है जो बिना प्रदूषण और कम पूँजी निवेश से मध्यप्रदेश की पिछड़ी अर्थव्यवस्था को समृद्ध एवं सुदृढ़ बनाने में सहायक सिद्ध हो सकता है। और अंत में, पर्यटक (Tourist) जो सिर्फ और सिर्फ पर्यटक होते हैं और वे हर उस चीज को देखना, घूमना, अनुभव करना चाहते हैं, जो उनके तनावों को हल्का कर उन्हें आल्हादित करें, उनमें उत्साह-उमंग व जोश भर दे, उन्हें तन-मन से प्रसन्न कर दे। अतः इस उद्योग के विकास के लिए गम्भीरता से प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
मार्च 1963 में पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए श्री लक्ष्मीकान्त झा के नेतृत्व में 1965 में झा समिति का गठन हुआ। 1966 में भारतीय पर्यटन विकास निगम बना, 8 नवम्बर 1982 को भारत के पर्यटन मंत्रालय ने प्रथम राष्ट्रीय पर्यटन नीति को संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया गया है। इस नीति के पांच प्रमुख उद्देश्य रखे गये-
1. आपसी भ्रमण के माध्यम से राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव को बढ़ाना।
2. पर्यटन द्वारा विश्व की विचारधारा एवं विकास की तकनीकी का ज्ञान प्राप्त करना। पैतृक सम्पदा एवं संस्कृति को बनाये रखने, नष्ट होने से बचाने और समृद्ध बनाने के लिए प्रचार प्रसार करना आदि।
3. पर्यटन द्वारा आर्थिक एवं सामाजिक लाभ प्राप्त करना। अर्थात् रोजगार के अवसरों में वृद्धि, आय का सृजन, राजस्व की प्राप्ति, विदेशी विनियम का अर्जन और मानव व्यवहार में सुधार करना है।
4. पर्यटन के विकास से राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय एकीकरण की विचारधारा को युवकों में विकसित करना।
5. पर्यटन के विकास द्वारा मेलों एवं खेलों आदि में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना।
खजुराहो का नाम आते ही सब के दिमाग में कामक्रीड़ा करती हुई मूर्तियों वाले मंदिरों की तस्वीर उभर आती है, लेकिन खजुराहो में इसके अलावा भी बहुत कुछ है, अगर यहां के मुख्य आकर्षण की बात करें। यहां के मंदिर तीन भागों में बंटे हुए है। पश्चिम समूह, पूर्वी समूह एवं दक्षिण समूह के मंदिर । खजुराहो एक छोटे कस्बे जैसा है। जहां ज्यादातर विदेशी सैलानी आते है। इन मंदिरों के प्रांगण में अपने साथी के हाथों में हाथ डाले हुए जीवन के कई गूढ़ रहस्य समझ सकते है। मंदिरों की दीवारों पर उकेरी गई सुंदर मूर्तियां केवल कामक्रीड़ा का ही चित्रण प्रस्तुत नहीं करती, बल्कि जीवन के हर एक पहलू पर प्रकाश डालती हैं। खजुराहो बेशक एक छोटा-सा शहर है, लेकिन यह अपने अंदर बहुत से अद्भुत नजारे और प्राकृतिक सुंदरता छिपाए हुए है। तमाम ऐतिहासिक सौगातें समेटे यह जगह प्रकृति प्रेमियों को भी उतनी ही रास आती है,
जितनी शिल्प प्रेमितयों को। यहां का एक रोचक सफरनामा पेश कर रही है। हालांकि यहां का किला काफी हद तक खंडहर में तब्दील हो चुका है, फिर भी यह पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है। खजुराहो की यात्रा के लिए अक्तूबर से मार्च का समय सबसे अच्छा माना जाता है। यहां अक्टूबर से लेकर पूरे जाड़ों तक पर्यटकों का तांता लगा रहता है। यहां हर शाम होने वाला लाइट एण्ड साउंड शो जिसे खास अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज दी है, देखने लायक है। खजुराहो पर्यटन ऐसे कपल्स के लिए बेस्ट हनीमून विकल्प है, जिन्हें इतिहास और वास्तुकला में दिलचस्पी है।
सैलानियों का स्वर्ग कहा जाने वाला मध्यप्रदेश अपनी गौरवपूर्ण गाथाओं, शौर्य और बलिदान के साथ-साथ अपने अजेय दुर्गों, ऐतिहासिक स्मारकों, हस्तशिल्प, भव्य प्रासादों, कलात्मक हवेलियों व स्थापत्य कला के लिए समूचे विश्व में अपनी अनूठी पहचान बनाए हुए हैं। मध्यप्रदेश में स्थापत्य कला का इतिहास तो उतना ही प्राचीन है, जितना मानव इतिहास। स्थापत्य कला के एक से बढ़कर एक नायब नमूनों को देखने वाले लाखों देशी-विदेशी पर्यटक एक बारगी तो हैरानी में पड़ जाते हैं कि इन्हें शिल्प कारीगरों ने किस तरह बनाया होगा। खजुराहो में पर्यटन की अथाह असीम अलौकिक क्षमता का अहसास अब मध्यप्रदेश सरकार को भी हो गया है। अब सरकार भी पर्यटन को विकास की राह में मील का पत्थर मानने लगी है। सरकार व निजी क्षेत्र की जोर-शोर से भागीदारी से इस क्षेत्र में एक नई बयार चल पड़ी है, जो भारतीय पर्यटन को उसके स्वर्णिम लक्ष्य तक पहुंचाने हेतु कृत संकल्प दिखाई दे रही है। खजुराहो में पर्यटकों का स्वर्ग बनने की व्यापक संभावनाएं है। खजुराहो के मंदिर शिल्पगत विशेषताओं व प्रतिमा की उत्कृष्टता की दृष्टि से पर्यटकों के लिए वैशिष्टय लिये हुए हैं।
‘स्वर्ग’ शब्द एक ऐसे कल्पना लोक का चित्र प्रस्तुत करता है। जहां मानव मात्र के लिए वे सारी सुख-सुविधाएं सहज ही उपलब्ध है, जिन्हें वह अपने जीवन में पाना चाहता है, दूसरे शब्दों में कहें तो स्वर्ग हमारे मन को संतुष्टि एवं प्रसन्नता देने का स्थान है, परन्तु हम यदि विषय विशेष के संदर्भ में बात करें, तो पर्यटकों का स्वर्ग वह स्थान होगा, जहां के पर्यावरण तथा प्राकृतिक छटा से पर्यटक शारीरिक रूप से अनुप्रमाणित, मानसिक रूप से तरोताजा, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और आध्यात्मिक रूप से संतृप्त हो जाए, इन उद्देश्यों की पूर्ति के पश्चात् ही स्वर्ग शब्द की सार्थकता प्रमाणित होगी।
खजुराहो में इतिहास हमारा आलिंगन करता है। उसकी गोद में बैठकर हम चाहे तो सदियों के पदचाप को सुन सकते हैं। वहां की हवा में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धुन मौजूद है, जो आधुनिक शोर में दबी नहीं है, बल्कि उससे मिल कर एक नई मधुर सिंफनी पैदा करती है। पर्यटकों की आंखो को सुकून देने वाली खजुराहो की यही सुंदरता पर्यटकों को खास लुभाती है। यहां कई रेस्तरां हैं और होम-स्टे भी उपलब्ध हैं, जहां आप रूक सकते हैं। इन पर्यटन स्थलों तक पहुँचाने के लिए सड़क, रेलमार्ग एवं वायुमार्ग का उपयोग किया जा सकता है। वर्तमान में एक पर्यटक धार्मिक दृष्टि के साथ-साथ मौज-मस्ती, ज्ञार्नाजन शहर के कौलाहल से दूर सुरम्य शान्त प्रकृति का आनन्द प्राप्त करने तथा कुछ नया देखने व जानने की उत्सुकता के उद्देश्य से पर्यटन पर जाता है। इस दृष्टि से खजुराहो अपने आप में समृद्ध पर्यटन स्थल है। जहाँ प्रत्येक वर्ग की रूचि के लिए दर्शनीय स्थल विद्यमान है।
जितना गौरवपूर्ण इतिहास, उतनी ही शानदार है इसकी सांस्कृतिक परंपरा। जिधर भी नजर डालेगें, एक गौरवपूर्ण गाथा सुनाता नजर आएगा यह शहर। मैंने इतिहास में पढ़ा था और आज वह जगह देख रहा था। इतिहास को जीना अच्छा लग रहा था। भारत में पर्यटन प्रोत्साहन हेतु सबसे बड़ी बाधा पर्यटकों के लिए आधुनिक सुविधाओं का अभाव मानी जाती है. यह बात अब सबकी समझ में आ चुकी है, इसलिए इस दिशा में निरन्तर प्रयास विगत कुछ वर्षों में तेजी से किए जा रहे हैं आशा है कि इनके वांछित परिणाम प्राप्त होंगे और आने वाले समय में पर्यटन, विश्व के साथ-साथ भारत का भी सर्वोच्च स्थान का उद्योग हो सकेगा।
यथार्थतः पर्यटन क्षेत्र के विकास की रफ्तार तथा खजुराहो की पर्यटन संपदा व धनी सांस्कृतिक विरासत को देखते हुए यदि पर्यटन को महत्त्व दिया जाता है तो इसमें संदेह नहीं कि पर्यटन के तीव्र विकास के लिए इन समस्याओं का तत्काल समाधान कर पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। खजुराहो में पर्यटन की धीमी गति से विकास यह दर्शाता है कि अभी तक हम पर्यटन के महत्व को पूरी तरह से समझाने में असफल है। जबकि खजुराहो में पर्यटन की विपुल संभावनायें हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों से 2022 तक देश में कम से कम 15 पर्यटन स्थलों का भ्रमण करने का आह्मन किया। माना जा रहा है कि घरेलू पर्यटन को रफ्तार मिलने से आने वाले दिनों में इस क्षेत्र में जॉब की संभावनांए तेजी से बढ़ेगी। पर्यटन क्षेत्र में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर करीब 4.27 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। जिस तरह हमने सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में सफलता हासिल की है, वैसी तरक्की हम पर्यटन क्षेत्र में भी प्राप्त कर सकते हैं। आवश्यकता है तो बस सही दिशा, आधारभूत सुविधाओं के विकास और इसके लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयत्नों की।
अब खुजराहों जैसी नायाब दौलत के ऊपर मंडराते विनाश के बादलों से भारतीय मानव ही नहीं वरन् पूरा विश्व एक बार चिन्तित हो उठा है। इस ’विश्व विरासत’ कलाकृतियों एवं सांस्कृतिक राजधानी को आज बचाने के उपाय शुरू करने परम आवश्यक है। मध्यप्रदेश में पर्यटन व्यवसाय से अर्जित आय में खुजराहों का बहुत बड़ा योगदान है। अतः इस क्षेत्र का पर्यावरण ठीक रखना हमारी आवश्यकता और विवशता दोनों है।
पर्यटन वास्तव में प्रकृति के रहस्यों की खोज, समाज की पहचान और मानव सभ्यता की जड़ों की पहचान का साधन है। प्रस्तुत आलेख पूर्णतः व्यक्तिगत भ्रमण पर आधारित है। इसमें खजुराहो के पर्यटन विकास की सम्भावनाएँ पर एक भौगोलिक अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। वर्तमान में यह अध्ययन खजुराहो के विश्लेषण में उपयोगी एवं लाभकारी सिद्ध होगा।
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