कश्मीर एक बार फिर से सुर्खियों में है। भारत के दो हिस्सें में बंटने से पैदा हुआ यह घाव न अब तक भरा है, न ही सूखने का नाम ले रहा है। उम्मीद की कहीं कोई किरण नहीं दिख रही है। विदेशी मंचों पर भी मिलने से परहेज किया जा रहा है। सारे प्रत्यक्ष रिश्ते यहां तक कि बस, ट्रैन एवं वायु यातायात ठप पड़ गया है और खेल सम्बन्ध तक टूट गये है। मसूद अजहर को वैश्विक आंतकी घोषित करने के लिए भी भारत प्रयासरत है। हालांकि दोनों देशों के संवेदनशील और किसी भी तरह की कड़वाहट से दूर रहने वाले लोगों के मन में मिलन और रिश्ते सहयोगपूर्ण बनाने की टीस लगातार उठ रही थी। जबकि भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध और कई अन्य सशस्त्र झड़प हो चुकी है जिसमें चीन तीसरे पक्ष के रूप में संघर्ष में शामिल रहा है।
पाकिस्तान की विदेश नीति का क्रियान्वयन पाकिस्तान से न होकर किसी दूसरी शक्ति से होता है। इसी वजह से वह अपना निर्णय अपने राष्ट्रीय हित की जरूरतों के अनुरूप नहीं ले पाता है। पाकिस्तान की राजनीतिक सत्ता की डोर अमेरिका और चीन के हाथों में है। पाकिस्तान की सरकार द्वारा लिये गये निर्णय का निष्कर्ष इन्हीं दो देशों द्वारा निकाला जाता है और जब इन दोनों देशों की इच्छाओं के मनोनुकूल वार्ता नहीं होती है तो वे बीजिंग और वांशिगटन से बैठे-बैठे डोरी खींच लेते है। इस खिचाव का असर इस्लामाबाद पर पड़ता है और पाकिस्तान भारत के विरूद्ध आग उगलना शुरू कर देता है। जिससे दोनों देशों के बीच विश्वास की नींव हिल जाती है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ और सुरक्षा परिषद ने भी कश्मीर की समस्या को सुलझाने से ज्यादा उलझाने का ही काम किया। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ‘भारत-पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र का आयोग’ का निर्माण किया गया मैकनाटन योजना, डिक्शन मिशन, ग्राहम मिशन एवं जारिंग मिशन भी असफल सिद्ध हुए।
14 फरवरी, 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आंतकी हमले में 40 से ज्यादा जवान शहीद हो गए। इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित इस्लामिक आतंकवादी समूह जैश-ए-मोहम्मद ने ली है। यह आंतकी हमला जम्मू-कश्मीर में पहली बार नहीं हुआ है बल्कि ऐसे हमले इससे पहले भी कई बार हो चुके हैं जैसे उरी हमला आदि। इस तरह के आतंकी हमले पाकिस्तान समर्थित होते हैं तथा इसका प्रमुख कारण भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर समस्या है। क्योंकि कश्मीर के वर्तमान संकट का बीज पाकिस्तान के निर्माण के सिद्धान्त में अटका पड़ा है।
जम्मू-कश्मीर राज्य की स्वायत्तता के संदर्भ में अनुच्छेद 370 तथा भाग XXI में इसकी वर्तमान संवैधानिक स्थिति को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
भारतीय संविधान की प्रस्तावना जम्मू और कश्मीर पर लागू होती है।
संविधान का भाग-6 राज्य (State) जम्मू और कश्मीर के मामले में लागू नहीं होता।
जम्मू-कश्मीर को संविधान में उल्लिखित राज्य की परिभाषा से मुक्त रखा गया है।
संसद को अन्य राज्यों की भाँति जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में भी संघ सूची में वर्णित सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है।
संसद को राज्य सूची में दर्ज विषयों पर जम्मू-कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में कोई कानून बनाने का अधिकार प्राप्त नहीं है, क्योंकि इस राज्य का अपना पृथक् संविधान है, परन्तु भारतीय संविधान का अनुच्छेद 249 इस राज्य पर भी लागू है, जिसके तहत् राज्य सभा राज्य सूची में सम्मिलित किसी विषय को यदि अपने उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा राष्ट्रीय महत्व का घोषित करती है तो संसद उस विषय पर जम्मू-कश्मीर राज्य के सम्बन्धों में भी कानून बना सकती है। अनुच्छेद 250 भी राज्य पर लागू होता है।
जम्मू-कश्मीर राज्य की दशा में विधान बनाने की अवशिष्ट शक्ति (Residuary Powers) राज्य के विधान मण्डल को है केवल विदेशी आक्रमण के समय राज्य सभा में प्रस्ताव पारित करके संसद के अधिकार क्षेत्र का विस्तार इस राज्य पर किया जा सकेगा।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 256 तथा 257 (जिनके तहत् केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को निर्देश दे सकती है। (अनुच्छेद 365) जिसके तहत् केन्द्र सरकार के आदेश का उल्लंघन करने वाली राज्य सरकारों को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) लागू किया जा सकता है, जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होगें।
संसद जम्मू-कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में समवर्ती सूची में वर्णित विषयों में से केवल कुछ ही विषयों पर कानून बना सकती है। अधिकांश विषयों पर केवल राज्य विधानसभा ही कानून बनाने के लिए अधिकृत है। केन्द्र व राज्य के एक ही विषय पर कानून होने की स्थिति में राज्य का कानून निरस्त नहीं माना जायेगा।
‘‘इस्टूमेंट ऑफ एक्सेशन’’ के तहत जम्मू और कश्मीर के महाराजा ने तीन विषयों अर्थात् रक्षा, विदेश मामले और संचार को भारत को सौंप दिया, जिन पर भारतीय संसद कानून बना सकती है।
वर्तमान में भारत के सर्वोच्च न्यायालय, निर्वाचन आयोग, नियंत्रक महालेखा परीक्षक इत्यादि संवैधानिक संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र जम्मू-कश्मीर राज्य पर भी लागू है।
संविधान का आपातकालीन उद्घोषणा सम्बन्धी अनुच्छेद 352 भी राज्य पर लागू है, लेकिन इसमें इस राज्य के सम्बन्ध में ‘परन्तुक’ शब्द जोड़ा गया है, जिसमें कहा गया है कि बाह्य आक्रमण अथवा राज्य में आन्तरिक अशान्ति अथवा उसका खतरा पैदा होने की स्थिति में राज्य सरकार के अनुरोध या सहमति पर ही वहाँ आपातकाल की उद्घोषणा की जा सकती है। इसी प्रकार अनुच्छेद 356 भी अपने परिवर्तित रूप में यहाँ लागू है। जिसके अनुसार वहाँ राज्य के संविधान के उपबन्धों के अनुरूप सरकार नहीं चलने पर पहले राज्यपाल का शासन लागू किया जा सकता है। उसके पश्चात यदि आवश्यक हो राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है अनुच्छेद 360 वित्तीय आपात् यहाँ लागू नहीं किए जा सकते।
अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन प्रक्रिया अपना कर अनुच्छेद 370 का निरसन किया जा सकता है। चूँकि अब संविधान सभा अस्तित्व में है ही नहीं अतः राष्ट्रपति पर उसकी सिफारिश की बाध्यता लागू नहीं होती, वह अधिसूचना जारी करके अनुच्छेद 370 को प्रभावहीन बना सकता है।
भारत का संविधान जम्मू और कश्मीर के सम्बन्ध में सिर्फ अंतरिम व्यवस्था कर सकता था। इसी अंतरिम व्यवस्था से संबंधित आश्वासन को कानूनी रूप देने के लिए संविधान में अनुच्छेद 370 शामिल किया गया।
अनुच्छेद 370(1)(ग) के अनुसार, भारतीय संविधान के दो ही अनुच्छेद जम्मू और कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में लागू होंगे-अनुच्छेद 1 तथा अनुच्छेद 370
जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद ने कहा-भारतीय संसद अनुच्छेद 370 को भंग करने की शक्ति नहीं रखती है उधर जम्मू और कश्मीर के उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में धारा 370 को ‘‘निरस्त या संशोधित नहीं किया जा सकता है।’’
चार अनुसूचियाँ बिना किसी परिवर्तन के जम्मू और कश्मीर पर लागू होती है। पहली अनुसूची, दूसरी अनुसूची, चौथी अनुसूची तथा आठवीं अनुसूची।
जम्मू और कश्मीर के संविधान के भाग 2 का अनुच्छेद 3 भी कहता है कि ‘‘जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। ’’भारतीय संसद ने जम्मू-कश्मीर को राष्ट्र का ‘अभिन्न अंग’ मानने वाला सर्वसम्मत प्रस्ताव 22 फरवरी, 1994 को पारित किया था।
इस तरह जम्मू-कश्मीर राज्य की स्वायत्तता शेष अन्य राज्यों की स्वायत्तता से तुलनात्मक दृष्टि से अत्यन्त व्यापक है। यही स्वायत्तता राज्य में व्याप्त अलगाववाद का प्रमुख कारण है इसकी वजह से राज्य की जनता अपने विशिष्ट अधिकारों के कारण अपने को अलग-थलग महसूस करती है और उसका शेष भारत की जनता के साथ भावनात्मक एकीकरण नहीं हो सका है। यदि उसे अन्य प्रदेशों की जनता के साथ समरस होने का अवसर दिया जाता तो यहाँ की संस्कृति बहुरंगी एवं विविधतापूर्ण होती, जिससे अलगाववाद को सिर उठाने व विस्तृत होने का अवसर ही नहीं मिलता।
अलगाववाद प्रारम्भ में पाकिस्तान के हमले से बचने के लिए हरि सिंह ने भारत से आपात सहायता मांगी थी। सहायता देने के एवज में जो वसूल किया गया, वह भारत-कश्मीर का विलय-पत्र (Instrument of Accession) था, यह विलय-पत्र बहुत हड़बड़ी, में तैयार किया गया था। इसलिए यह नहीं देखा गया कि कश्मीर को विशेष दर्जा देने से भविष्य में किस तरह की अड़चने आ सकती हैं?
जम्मू-कश्मीर को एक अलग संविधान बनाने और राज्य का अलग झंड़ा तय करने की स्वीकृति भारत ने ही दी थी। फलस्वरूप एक संविधान सभा भारत के लिए काम कर रही थी और दूसरी संविधान सभा जम्मू कश्मीर के लिए, भारत की संविधान सभा ने तो यह प्रावधान कर दिया था कि इस संविधान में संशोधन किस प्रकार किया जा सकता है, लेकिन जम्मू कश्मीर की संविधान सभा ने यह प्रावधान किया कि संविधान में परिवर्तन या इसके प्रवर्तन में न रहने के बारे में राष्ट्रपति द्वारा कोई भी अधिसूचना निकाले जाने से पहले इस राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी। जम्मू-कश्मीर का संविधान बन जाने के बाद संविधान सभा को 26 जनवरी 1957 को भंग कर दिया गया। अब जबकि वहाँ कोई संविधान सभा नहीं है, ‘संविधान सभा‘ को ‘राज्य की विधानसभा‘ कहा गया है और राज्य सरकार को राज्यपाल। इस संदर्भ में वस्तुस्थिति यह है अभी राज्य में राज्यपाल शासन है, इसलिये राष्ट्रपति का आदेश ही इसे खत्म करने के लिये काफी है। भारतीय संविधान के 21वें भाग का 370 एक अनुच्छेद है। इसके 3 खंड हैं और तीसरे खंड में लिखा है कि भारत का राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल (संविधान सभा) की सलाह को राज्य की मंजूरी मानते हुए अनुच्छेद 370 को कभी भी खत्म कर सकता है।
जम्मू कश्मीर सरकार ने इसका मूल मसौदा पेश किया। संशोंधन व विचार-विमर्श के बाद 27 मई, 1949 को संविधान सभा में अनुच्छेद 306 (a) (अब 370) पारित हुआ। 17 अक्टूबर, 1949 को अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का हिस्सा बन गया। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर राज्य को अपना संविधान खुद तैयार करने का अधिकार देता है। इस मामले में अपवाद केवल अनुच्छेद 370 (1) को रखा गया है। अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर के मामले में संसद को संसदीय शक्तियों का इस्तेमाल करने से रोकता है। नवंबर 1956 में जम्मू-कश्मीर में अलग संविधान का काम पूरा हुआ और 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 दरअसल केंद्र से जम्मू-कश्मीर के संबंधों की रूपरेखा निर्धारित करता है। अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को विशेष अधिकार देता है। इसके तहत भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिये कानून बना सकती है। इसके अलावा किसी कानून को लागू करवाने के लिये केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होती है।
संभवतः 1947 के बाद के इतिहास में पांच अगस्त 2019 अपने विशेष महत्व और युगांतकारी प्रभाव के कारण एक विशेष तिथि बन गई है। जिस अनुच्छेद 370 को हटाना असंभव और अकल्पनीय माना जा रहा था, वह बहुत धीमे से कुछ यों निष्प्रभावी हो गया, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। केंद्र सरकार ने एक साहसिक और ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन दो केंद्रशासित क्षेत्रों जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में करने का प्रस्ताव किया। लद्दाख की यह पुरानी मांग थी जो पुरी हुई इस संदर्भ में संसद ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 पारित कर दिया है। ग्रहमंत्री श्री अमित शाह द्वारा विधेयक पहले राज्यसभा में और उसके बाद लोकसभा में पेश किया। यह विधेयक जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान समाप्त करने, जम्मू कश्मीर को विधायिका वाला केंद्रशासित क्षेत्र और लद्दाख को बिना विधायिका वाला केंद्रशासित क्षेत्र बनाने का प्रावधान करता है। अर्थात् जम्मू-कश्मीर में राज्य सरकार बनेगी, लेकिन लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश की कोई स्थानीय सरकार नहीं होगी। अब अनुच्छेद 370 का केवल खंड-1 लागू रहेगा, शेष खंड समाप्त कर दिये गए हैं। खंड-1 भी राष्ट्रपति द्वारा लागू किया गया था। राष्ट्रपति द्वारा इसे भी हटाया जा सकता है। अनुच्छेद 370 के खंड-1 के मुताबिक जम्मू-कश्मीर की सरकार से सलाह कर राष्ट्रपति, संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को जम्मू-कश्मीर पर लागू कर सकते हैं।
केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में कारगिल और लेह जिले शामिल होंगे तथा जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में जम्मू और कश्मीर राज्य के शेष क्षेत्र शामिल होंगे ।
जम्मू-कश्मीर पुडुचेरी और लद्दाख चंडीगढ़ मॉडल पर काम करेगा।
लेफ्टिनेंट गवर्नर : जम्मू-कश्मीर व लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक के माध्यम से प्रशासित किया जाएगा, जो लेफ्टिनेंट गर्वनर का रोल निभायेगा।
जम्मू-कश्मीर की विधान सभा : विधेयक में केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए एक विधान सभा का प्रावधान है। विधानसभा में कुल सीटों की संख्या 107 होगी। इनमें से 24 सीटें जम्मू-कश्मीर के कुछ क्षेत्रों में पाकिस्तान के कब्जे में रहने के कारण खाली रहेगी। प्रस्तावित परिसीमन के मुताबिक जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में सात सीटें बढ़ सकती है।
इसके अलावा, केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में उनकी आबादी के अनुपात में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विधानसभा में सीटें आरक्षित होंगी।
इसके अलावा, उपराज्यपाल महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए विधानसभा में दो सदस्यों को नामित कर सकते हैं, यदि उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
यहां की आधिकारिक भाषा उर्दू की बजाय हिंदी हो गई।
हिंदू आबादी अल्पसंख्यक थी, अब मुसलमान अल्पसंख्यक हो गए।
विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा और उपराज्यपाल को छह महीने में कम से कम एक बार विधानसभा को बुलाना होगा।
जम्मू-कश्मीर से पांच और लद्दाख से एक लोकसभा सांसद ही चुन कर आएंगे।
जम्मू-कश्मीर से पहले की तरह ही राज्यसभा के 4 सांसद होंगे।
मंत्रीपरिषद् पहले कैबिनेट में 24 मंत्री बनाए जा सकते थे, अब दूसरे राज्यों की तरह विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 10% से ज्यादा मंत्री नहीं होंगे।
काउंसिल सहयोगी और उपराज्यपाल को उन मामलों पर सलाह देगी जो कानून बनाने के लिए विधानसभा के पास हैं। मुख्यमंत्री, उपराज्यपाल को परिषद् के सभी निर्णयों की जानकारी देंगे।
उच्च न्यायालय दोनों केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख तथा जम्मू-कश्मीर के लिए एक ही होगी।
इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की सरकारों का कानूनी सलाह प्रदान करने के लिए अलग-अलग एडवोकेट जनरल होगें।
जम्मू कश्मीर में स्थानीय लोगों की दोहरी नागरिकता समाप्त हो जाएगी।
दोनों प्रदेशों के सरकारी कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग के अनुसार वेतन।
विधान परिषद् जम्मू-कश्मीर राज्य की विधान परिषद् को समाप्त कर दिया जाएगा। विघटन होने पर, परिषद् में लंबित सभी विधेयकों में कमी आएगी।
भारतीय सविधान का अनुच्छेद 360 (आर्थिक आपात काल) लागू होगा।
सलाहकारी समितिया केंद्र सरकार विभिन्न उद्देश्यों के लिए सलाहकारी समितियों की नियुक्ति करेगी, जिनमें शामिल है (i) दो केंद्रशासित प्रदेशों के बीच जम्मू और कश्मीर राज्य के निगमों की संपत्ति और देनदारियों का वितरण (ii) उत्पादन और आपूर्ति से संबंधित मुद्दे बिजली और पानी तथा (iii) जम्मू-कश्मीर राज्य वित्तीय निगम से संबंधित मुद्दे।
इस समितियों को छह महीने के भीतर जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को अपनी रिपोर्ट देनी होगी, जिन्हें 30 दिनों के भीतर इन सिफारिशों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
कानूनों की सीमा अनुसूची में 106 केंद्रीय कानूनों को सूचीबद्ध किया गया है, जो केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित तारीख को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेशों के लिए लागू किए जाएगें। जैसे- RTI, RTE और आधार आदि।
इनमें आधार अधिनियम, 2016 भारतीय दंड संहिता, 1860 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 शामिल है। इसके अलावा, यह जम्मू-कश्मीर के 153 राज्यों के कानूनों को खत्म करता है। जिन्हें राज्य के स्तर पर बनाया गया था।
इसके अलावा, 166 पुराने राज्य कानून और राज्यपाल कानून लागू रहेंगे और सात कानून संशोधनों के साथ लागू होंगे। इन संशोधनों में भूमि के पट्टे पर उन लोगों के लिए प्रतिबंधों को खत्म करना शामिल है, जो जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी नहीं है।
अनुच्छेद 370 के समाप्त होने से अनुच्छेद 35A स्वतः अमान्य हो गया है। इस तरह भूमि, कारोबार और रोज़गार पर वहाँ के लोगों के विशेषाधिकार भी खत्म हो जाएगें। अनुक्ष्छेद 35A जो कि अनुच्छेद 370 का विस्तार है, राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने के लिये जम्मू-कश्मीर राज्य की विधायिका को शक्ति प्रदान करता है और वहाँ के स्थायी निवासियों को विशेषाधिकार प्रदान करता है तथा राज्य में अन्य राज्यों के निवासियों को कार्य करने या संपत्ति के स्वामित्व की अनुमति नहीं देता। इस अनुच्छेद का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकीय संरचना की रक्षा करना था। नये प्रावधान इस प्रकार है।
जम्मू-कश्मीर में देश के अन्य राज्यों के लोग भी ज़मीन लेकर बस सकेंगे। अब तक देश के अन्य क्षेत्रों के लोगों को वहाँ ज़मीन खरीदने का अधिकार नहीं था।
भारत का कोई भी नागरिक अब जम्मू-कश्मीर में नौकरी भी कर सकेगा। अब तक जम्मू-कश्मीर में केवल स्थानीय लोगों को ही नौकरी करने का अधिकार था।
जम्मू-कश्मीर की लड़कियों को अब दूसरे राज्य के लोगों से भी विवाह करने की स्वतंत्रता होगी। किसी अन्य राज्य के पुरुष से विवाह करने पर उनकी नागरिकता खत्म नहीं होगी, जैसा कि अब तक होता रहा है।
अब भारत का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर का मतदाता बन सकेगा और चुनावों में भाग ले सकेगा।
रणबीर दंड संहिता के स्थान पर भारतीय दंड संहिता प्रभावी होगी तथा नए कानून या कानूनों में होने वाले बदलाव स्वतः जम्मू-कश्मीर मे भी लागू हो जाएगें
वरिष्ठ अधिकारियों के सरकारी भवनों और वाहनों पर अब से केवल राष्ट्रीय ध्वज का उपयोग किया जाएगा।
पुलिस व्यवस्था अब केन्द्र के अधीन होगी। साथ ही अल्प संख्यक आरक्षण के योग्य है।
राज्य में पिछले तीन-चार दशकों से जिस तरह के हालात बने हुए थे, उसे देखते हुए यह जरूरी भी हो गया था कि इस अनुच्छेद को खत्म कर दिया जाए। ऐसा करते समय जाहिर है सरकार के सामने राज्य के विकास को लेकर अपनी परिकल्पनाएं होंगी। वैसे भी यह संवेदनशील कदम काफी सोच-विचार के बाद ही उठाया गया होगा। राज्य की संवेदनशील स्थिति के मद्देनज़र किसी भी जोखिम से निपटने की रणनीति सरकार के पास होगी और इसके लिये ज़रूरी तैयारी भी उसने कर रखी होगी। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर को दो राज्यों में बाँट देने के बाद भी वहाँ अमन चैन कायम रखना जरूरी होगा। वास्तव में अनुच्छेद 370 पाकिस्तान समर्थक अलगाववादियों का रक्षा कवच और वहां रहने वाले गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए दिन-रात प्राण सुखाने वाला प्रावधान था।
Me Admin
Welcome to Vidyamandirias