मध्य प्रदेश के दिल में बसा खजुराहो अपने भव्य मंदिरों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां पत्थरों को काटकर शानदार प्रतिमांए बनाई गई हैं और इनकी अभिव्यक्ति इतनी जीवंत है कि देखने वाला मानो मंत्रमुग्ध सा हो जाता है। आज एक छोटे से गांव के रूप में स्थापित खजुराहो कभी एक गौरवशाली शहर हुआ करता था, जहां चंदेल और राजपूत सम्राटों ने शासन किया। यहां मंदिर भव्यता का एक स्वर्णिम इतिहास प्रतीत होता हैं। 1986 में खजुराहो के मंदिरों को यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थली का दर्जा प्रदान कर संरक्षित कर लिया है। मंदिरों के शहर के नाम से विख्यात इस शहर का प्रत्येक हिस्सा अपने आप में अद्भुत है। खजुराहो में चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित इन अनूठी प्रस्तर कलाकृतियों को यदि आप सजीव देखना चाहते हैं, वसंत ऋतु में खजुराहो आना बेहतर रहता है, क्योकि इस दौरान यहां का सौंदर्य देखते ही बनता है। विंध्य पर्वत की पहाड़ियां, हरे-भरे जंगल, गेहूं के हरे-हरे लहलहाते खेत और सरसों के पीले फूलों से यहां के सौंदर्य में चार चांद लग जाते हैं। अक्तूबर से मार्च तक यहां सबसे ज्यादा पर्यटक आते हैं। इसी मौसम में यहां खजुराहो नृत्य समारोह का आयोजन हर साल किया जाता है। तो फरवरी का माह आपके लिए सबसे मुफीद है। सात दिनों तक चलने वाले कला एवं संगीत के इस आयोजन में देश की विभिन्न नाट्य व नृत्य विद्याओं को श्रेष्ठ कलाकारों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। फरवरी माह में वेलेंटाइस-डे भी होता है। ऐसे में प्रेमी जोड़ों के लिए यह आदर्श स्थल है।
खजुराहो राज्य की स्थापना 10वीं सदी में चंदेल राजवंश ने की थी। यहां 950 ईसवी से 1050 ईसवी के बीच के अत्यंत ही छोटे-से समय में चंदेल राजाओं ने 84 हिंदू व जैन मंदिरों का निर्माण कराया। कहा जाता है कि इस जगह पर खजूर के पेड़ बड़ी संख्या में पाए जाते है, इसीलिए इसका नाम खजूराहों पड़ा। खजुराहो खजूर के पेड़ों से घिरे सरोवरों के लिए भी मशहूर रहा है। बाद में यहां से राजधानी महोबा स्थानांतरित हो गई। चंदेल राजाओं द्वारा खजुराहो तथा उसके 20 किमी. क्षेत्र में 84 हिंदू व जैन मंदिर बनवाए थे। वर्तमान में 6 किमी. क्षेत्र में फैले 22 मंदिर ही शेष बचे हैं, अद्भुत रूप में केवल सौ वर्षों की अवधि में बनकर तैयार हुए थे ये मंदिर चंदेल साम्राज्य के क्षीण होने के साथ ही समकालीन शासकों की घोर उपेक्षा के शिकार हुए। इस मनोरम स्थान पर बने खजुराहो के मंदिर भारतीय इतिहास के मध्यकाल में शिल्प और स्थापत्य के चरम उत्थान का अनुपम उदाहरण हैं। इस काल में खास कर मूर्त्त शिल्प कला के क्षेत्र में तो अभूतपूर्व उन्नति हुई मूर्तिकला और स्थापत्य कला निर्माण के इस युग में कितनी ही कला कृतियों का प्रणयन किया गया, जो इतिहास की बेशकीमती धरोहर के रूप में आज भी मौजूद है।
मध्यप्रदेश का बुंदेलखंड का इलाका वैसे तो देश में आर्थिक रूप से पिछड़ेपन के लिए जाना जाता है, पर यह क्षेत्र पर्यटन के लिहाज से काफी समृद्ध है। खजुराहो के मंदिर मध्य भारत की वास्तुकला के शताब्दियों के विकास के पश्चात् उस के चरमोत्कर्ष रूप को दर्शाते हैं। बुंदेलखंड के ही छतरपुर जिले के खजुराहो में चंदेल राजा चंद्रवर्मन व उनके वंशजों ने 84 मंदिरों का निर्माण कराया था। तीन समूहों में 6 किमी. क्षेत्र में फैले खजुराहो के ये अद्भुत मंदिर विश्व संरक्षित स्मारक है। ये मंदिर चंदेल काल के निवासियों के सामाजिक, आर्थिक धार्मिक एवं संस्कृति जीवन पर प्रकाश भी डालते हैं। चंदेल राजाओं की यादों को अपने जेहन में समेटे खजुराहो के मंदिरों का वैभव विश्वप्रसिद्ध है। खजुराहो के आसपास के क्षेत्र को विभिन्न नामों, जैसे कि वत्स, जजहोती, जेजाभुक्ति, जेजाकभुक्ति बुंदेलखंड, खजूरवाहक तथा खजूरपुर, से भी जाना जाता था। खजूरपुर का अर्थ है, सुनहरे खजूर के पत्तों वाला गांव। महोबा अभिलेख के अनुसार जयशक्ति ने अपने क्षेत्र का नाम जेजाभुक्ति बताया। अलबरूनी ने जजहोती की राजधानी खजुराहो बताया उसके बाद 1335 ई0 के लगभग अरब यात्री इब्नबतूता जब खजुराहो आया तो उसने खजुराहो को कजुर्रा कह कर संबोधित किया। और लिखता है कि इस स्थान पर एक विशाल सरोवर है जिसके निकट भव्य मंदिर है। जिसमें मूर्तियाँ है। इन मूर्तियों को मुसलमानों ने खंडित कर दिया। बाद में, 1838 में एक ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन टी. एस बर्ट को अपनी यात्रा के दौरान अपने कहारों से इन मंदिरों के बारे में जानकारी मिली। 1852 में अलेक्जेंडर कनिंघम ने यहां की कई यात्राएँ की इन मंदिरों का वर्णन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपॉर्ट में किया।
उन्नीसवीं शताब्दी में कुदरत की गोद में बने इन मंदिरों को फिर से ढूंढ निकाला गया और इनका जीर्णोद्धार किया गया। दरअसल, इस लंबे समय में जंगल ने इन मदिरों की खूबसूरती को कुछ बिगाड़ दिया था। मंदिरों में बनी भित्ति मूर्तियाँ चंदेल साम्राज्य में लोगों की जीवनशैली का सजीव प्रमाण है। मंदिर के चार मुख्य हिस्से अर्धमंडप, मंडप, अंतराल और गर्भगृह में विभक्त हैं। मूर्तियां रेखीय ब्योरों के साथ छरहरी तथा लंबी आकृतियों को वरीयता दी है अपनी भव्य छतों (जगती) और कार्यात्मक रूप से प्रभावी योजनाओं के लिए भी उल्लेखनीय है शिखर के ऊपर निकली हुई मीनारनुमा आकृति को उरूश्रृंग तथा गर्भगृह और बरामदे के बीच के लंबे गलियारे को अंतराल कहते हैं। खजुराहो उपशैली के मन्दिरों में परकोटा का पूर्ण अभाव है यानी मन्दिर चहारदीवारी में नहीं हैं। इन मंदिरों को तीन दिशाओं में बनाया गया है जिन्हें पश्चिमी समूह, पूर्वी समूह व दक्षिणी समूह में बांटा गया हैं।
कहा जाता है कि खजुराहो बनाने वाले यानी चंदेल वंश चंद्रमा के वंशज हैं। इस साम्राज्य के उद्भव के विषय में बहुत ही रोचक कथा प्रंचलित है। एक पौराणिक कथा के अनुसार काशी के राजपंडित की पुत्री अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी हेमवती एक रात सुरम्य तालाब में स्नान कर रही थी कि तभी चंद्र की नजर उस पर पड़ गई और वह उस पर रीझ गया। मानव वेश में पृथ्वी पर उतरकर चंद्रमा ने हेमवती का शील भंग कर दिया। हेमवती एक बाल विधवा थी। उसने समाज की मर्यादा को देखते हुए अपना जीवन त्यागने की ठान ली, लेकिन चंद्र ने उससे वायदा किया कि वह यशस्वी पुत्र की माता बनेंगी। चंद्र से यह सुनकर तथा समाज के डर से वह खजूरपुर नामक गांव (जंगल) में रहने लगी। और परिणाम स्वरूप उसने एक सुंदर पुत्र चंद्रवर्मन को जन्म दिया। हेमवती अपने पुत्र के साथ गांव में रहने लगी और उसने वहीं अपने पुत्र के गुरु की भूमिका भी निभाई। बड़े होने पर चंद्रवर्मन ने चंदेल साम्राज्य की स्थापना की और सपने में अपनी मां से मिली आज्ञा के अनुसार खजुराहो के इन मंदिरों का निर्माण कार्य प्रांरभ किया। मां की आज्ञा के अनुसार चंद्रवर्मन ने इन मंदिरों के माध्यम से मानव जीवन में इच्छाओं के महत्व को समझाने का प्रयास किया। चंद्रवर्मन ने खजुराहो के पहले मंदिर का निर्माण करवाया और उसके बाद के शासकों ने उसके काम को आगे बढ़ाया।
खजुराहो में नागर शैली में चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए विश्व प्रसिद्ध मंदिर मध्यकालीन भारतीय स्थापत्य कला की अनूठी कृतियां हैं हिंदू कला और संस्कृति को चंदेल राजाओं के संरक्षण में शिल्पियों ने इस शहर के बालुई पत्थरों पर उत्कीर्ण कर विभिन्न कलाओं को बेहद खूबसूरती से विभिन्न भाव भंगिमाओं के साथ उभारा है। वात्स्यायन की कृति कामसूत्र का पाषाण प्रतिमाओं के माध्यम से चित्रांकन किया गया है। कलागत विकास के साथ-साथ काम भावना वस्त्राभूषणों से अलकृंत, अलौकिक और नृत्यमुद्राओं में बनाया गया पन्ना की खान के स्थानीय गुलाबी व मटमैले ग्रेनाइट एवं लाल बलुआ पत्थरों को उभार कर अप्सराओं व गंधवों की आलिंगन, नृत्य सहित विभिन्न मुद्राओं में प्रेम प्रदर्शित करती अल्हड़ प्रतिमांए, कोष्ठाकार स्तम्भ शीर्षों पर खड़े साँपों के बीच त्रिभंगी मुद्राओं में स्त्री आकृतियों को तराश कर जमाई गई है यहाँ की कुछ अमर आकृतियां है - पैरों से काटाँ निकालती हुई नायिका, प्रसाधनरत नायिका, अलस नायिका, माता और पुत्र अनेक मिथुन आकृतियाँ खजुराहो आने वाले पर्यटकों को रोमाचिंत व कौतूहल से भर देती है।
खजुराहो के मंदिर संपूर्ण विश्व के लिए भारत का अद्भुत उपहार है। ये मंदिर जिंदगी के, जीवन को जीने के और अपनी भावनाओं को प्रकट करने के प्रतीक हैं। यहां जिंदगी और उसके हरेक पहलू को प्रस्तुत किया गया है, जिससे मूर्तिकारों की कलाकारी और चंदेल वंश के शासकों दोनों की क्षमताओं का पता चलता है। स्थापत्य के साथ मूर्तिकला का यह संगम इसकी कलात्मकता में अद्भुत रस भर देता है। मनोहारी नमूना एक ऐसी महिला की आकृति है - जो प्रेम पत्र लिख रही हैं उसके दाहिनें कंधे के पीछे नाखूनों के चिहृ है जो उसके प्रेमी ने उसे आंलिगनबद्ध करते समय लगा दिये थे। वैसे अगर पर्यटक को किसी संदर्भ के बारे में पता न भी हो, तो भी खजुराहो के मंदिरों को देखकर स्पष्ट बताया जा सकता है कि ये मंदिर स्त्री को समर्पित हैं। पत्र लिखती, काजल लगाती, बाल संवारती, आनंद में नृत्य करती और अपने बालक के साथ खेलती स्त्री। स्त्रीत्व के अनेक ऐसे ही पहलुओं का चित्रण मिलता है, इन मंदिरों में और वह भी भित्ति मूर्तियों के रूप में। काम-क्रीडा, नारी लिप्सा, भोग-विलास, आमोद प्रमोद सब सांमती लक्षण की तरह थे मंदिरों की दीवारों पर यह न आध्यात्मिक कारण से उत्कीर्ण है न ही यौन शिक्षा में वृद्धि करने हेतु बल्कि हिन्दू धर्म के चार पुरूषार्थां में से एक पुरूषार्थ ‘‘काम‘‘ को धर्म के माध्यम से कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करना व प्रकृतिक विषयों को स्पष्ट करना इसका उद्देश्य था। इसमें वह सफल रहे।
दसवीं सदी की शिल्पकारी की सुंदरता खजुराहो मंदिर के द्वार पर आज भी यथावत है। इस कलाकारी के आर-पार हो कर जब सूरज की किरणंे गुजरती हैं तो यहां हर ओर एक अलौकिक छटा उभरती है। जिसका नजारा इतना मनोरम होता है कि बस उसे एकटक निहारते रहने का मन करता है। भीतर प्रवेश करते ही मंदिर का दिव्य नजारा मानो कह उठता हो कि ‘पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त‘। मंदिर की भव्य वास्तुकला आश्चर्य चकित कर देती है। हर प्रांगण और मूर्ति की बनावट, सजावट देखते ही बनती है। सच तो यह है कि यहां की ऐतिहासिक धरोहरों ही हैं, जिन्हें करीब से देखने के लिए सैलानी खिचे चले आते हैं। इन प्राचीन मंदिर की भव्यता को शब्दों में बया करना मुश्किल है। दूसरी तरफ मतंगेश्वर महादेव मंदिर भक्तों द्वारा सामूहिक शिव स्त्रोत उच्चारण की ध्वनि मंदिर के दृश्य को दिव्य बना देती है।
खजुराहो पर्यटकों का स्वागत करने में तत्पर है अपनी प्राकृतिक आभा, सांस्कृतिक गरिमा तथा मानवीय मूल्यों के साथ। रेल, सड़क, तथा वायु मार्ग सभी से सुलभ खजुराहो वास्तव में भारतीय नक्शे के भीतर एक बेजोड़ जगह है। भारतीय पुरातत्व विभाग इन मंदिरों की देखभाल करता है। कई टूटे हुए मंदिरों को पुरातत्व विभाग ने फिर से ठीक कराया है। खजुराहो बस अड्डे के पास ही पर्यटन निदेशालय है। यहां से आपको राज्य की पूरी टूरिस्ट डायरी मिल जाती है। पुरातत्व विभाग ने कुछ विशेष किस्म की लाइटें लगाकर मद्धिम प्रकाश की व्यवस्था यहां की है।
शहर में वापस आकर हमने हस्तशिल्प संग्रहालय, खजुराहो राजकीय संग्रहालय व जनजाति आर्ट संग्रहालय भी देखे। उसी शाम हमें सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने का मौका मिला। जिसमें यहां का खजुराहो नृत्य हमें विशेष पसंद आया इस नृत्य में नृत्यांगना की भावभंगिमा और हाथों की लय में प्रेम, विरह और श्रृंगार के भाव प्रदर्शन ने हमारे दिल को छू लिया। कई पंथों के प्रभाव, वास्तुशिल्प का वैभव और शताब्दियों पुराने गौरवशाली इतिहास ने इस धरती को ऐसे आयाम दिए हैं कि जो पर्यटक यहां एक बार आता है, वह बार-बार आना चाहता हैं।
उस युग के दर्शन में गृहस्थ धर्म में जीवन की स्वीकृत शैली के तौर पर भौतिकता और इंद्रिय आधारित आनंद को प्रधानता दी गई थी। इसी तरह इन मंदिरों में दिखने और अनुभव किए जाने वाले आनंदों के साथ धर्म और कर्तव्य को मिलाते हुए देवों की उपासना का संदेश है, जो आत्मा और शरीर को आध्यात्मिक उत्थान की ओर ले जाता है। जीवन के आरंभिक वर्षों में मिली इस शिक्षा से जीवन की संध्या आने पर बिना किसी शोक का अनुभव किए इन आनंदों को त्यागने और मोक्ष की ओर बढ़ने में सहायता मिलती है।
पूर्व मध्य युग में, कलाकारों ने कला की समस्त विधाओं, वास्तु स्थापत्य और मूर्तिकला में अद्भुत दक्षता प्राप्त कर ली थी इन कलाविदों ने प्रभूत मात्रा में अपने हस्तलाघव का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया इस काल की कला के भव्य प्रतीकों की आज भी मर्मज्ञ मुक्त कंठ से सराहना करते हैं। अगर भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत को सँभालने में शीघ्र ही जाग्रत नहीं हुआ तो भारतवर्ष से मर्यादा संरक्षित नैतिकता और मानवता की पोषक भारतीय संस्कृति का नाम ही मिट जाएगा तब कवि पंत की कविता का यह अंश याद आएगा ‘‘कहां गया वह पूर्ण पुरातन, वह सुवर्ण का काल, भूतियों की दिगतं छवि-जाल............‘‘
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की देखरेख में और विश्व की सांस्कृतिक धरोहर के तौर पर संरक्षित खजुराहो के मंदिरों में अलग से देखने योग्य कई स्थल है। प्रमुख मंदिरों में वाराह मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, कंदारिया महादेव मंदिर, देवी जगदंबी मंदिर, सूर्य मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, वामन मंदिर, पाश्वर्नाथ मंदिर, चर्तुभुज मंदिर तथा दूल्हादेव मंदिर आदि शामिल हैं।
चौसठ योगिनी मन्दिर - खजुराहो के मंदिरों में चौंसठ योगिनी सबसे पुराना मंदिर हैं। पूरी तरह ग्रेनाइट का बना हुआ यह मंदिर देवी कालिका को समर्पित है। चौसठ योगिनियों की पूजा तांत्रिकों के द्वारा ही की जाती थी। जिसमें चौसठ योगिनियों तथा अन्य देवियों की प्रतिमांए स्थित थी।
कंदरिया महादेव मंदिर - खजुराहो के मंदिरों में कंदरिया महादेव मंदिर सबसे ऊंचा है। यह मंदिर शिव को समर्पित है। मंदिर में हाथी, घोड़े, आयुध, शिकार करते व नृत्य करते, अलिंगनबद्ध, स्त्री-पुरुषों के एकल व समूह के दृश्य हैं।
लक्ष्मण मंदिर - यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। विष्णु की त्रिमुखी प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित है प्रमुख मुख मानव का, दाहिना मुख सिंह, बायां मुख सूअर का बना हुआ है। मंदिर की बाहरी दीवार सुंदर प्रतिमाओं से सुसज्जित है। इन मंदिरों में घूमने जाने के लिए भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग द्वारा टिकट दिया जाता है,
विश्वनाथ मंदिर - इस मंदिर में ब्रहमा की तीन सिर वाली मूर्ति है। इसके प्रवेश पर सिंह और दक्षिणी द्वार पर हाथी बने हैं। सामने विशाल नंदी की मूर्ति है। मंदिर की प्रमुख दीवार पर प्रतिमाओं की तीन लाइनें हैं। घंगदेव वर्मन ने इस मंदिर का निर्माण काशी को विजित करने के उपंरात करवाया था।
चित्रगुप्त मंदिर - यह मंदिर जगदंबी मंदिर के पास ही है। सूर्य देव को समर्पित यह मंदिर पूर्वाभिमुख बनाया गया है। मंदिर के गर्भगृह में सूर्य की प्रतिमा है। सूर्य को सात अश्वों वाले रथ में दिखाया गया है। मंदिर की बाहरी दीवार सुंदर प्रतिमाओं से सुसज्जित है।
पाश्वर्नाथ मंदिर - जैन धर्म के तीन मंदिरों में सबसे विशाल इस मंदिर में पाश्वर्नाथ की मूर्ति 1860 में लगाई गई थी। बाह्म दीवारों पर अष्ट दिग्पालों की प्रतिमायें बहुत ही सुन्दर है। एवं प्रतिमाओं की तीन लाइनों में सबसे ऊपर गन्धर्वो को आकाश में उड़ते हुये दिखलाया गया है।
घंटाई मंदिर - इस मंदिर में भगवान महावीर की माता को दिखाई दिए सोलह स्वप्नों का वर्णन किया गया है। मंदिर में गरुड़ पर बैठी कई हाथों वाली जैन देवी का भी चित्रण किया गया है। यह अब एक खण्डहर मात्र रह गया है।
दूल्हादेव मंदिर - गर्भगृह में स्थित शिवलिंग सहस्त्र मुखी शिवलिंग है। अर्थात् इस शिवलिंग पर 1000 छोटे-छोटे शिवंलिग अंकित किये गये है। मान्यता के अनुसार इस शिवलिंग की पूजा करने से एक हजार एक शिवलिंग पूजने का फल प्राप्त होता है।
चर्तुभुज मंदिर - खजुराहो गांव से करीब 3 किमी. दक्षिण की ओर स्थित यह मंदिर पक्की सड़क के द्वारा एयरोड्रम रोड़ से जुड़ हुआ है। मंदिर की बाह्म दीवारों पर अंकित प्रतिमांए बहुत उलेखनीय नहीं है फिर उत्तर की ओर के आले को नरसिंही की प्रतिमा जो देवी लक्ष्मी को नरसिंह रूप में ललित आसान पर बैठे हुए दर्शाती हुई है।
लाइट एण्ड साउंड शो - पश्चिमी मंदिर समूह के बगीचे में शाम के समय हर दिन लाइट ऐंड साउंड कार्यक्रम आयोजित होता है, जिसमें चंदेल राजवंश व खजुराहो राज्य की कहानी संगीत के स्वरों की गूंज के साथ सुनाई जाती है। यह शो हिंदी व अंग्रेजी में होता हैं।
खजुराहो में घूमने के लिए भी बहुत से स्थल हैं, जो किसी न किसी पौराणिक संदर्भ को अपने में समेटे हैं।
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