चंदेल वंश का काल, अपनी अद्भुत कला, धर्म-सहिष्णुता तथा विलक्षण पराक्रमी सेना के लिए मध्य भारतीय इतिहास के सुनहरे पृष्ठों पर सुप्रतिष्ठित है महान् चंदेल कला अपने अनोखे सौन्दर्य व चमत्कृत भव्य कलात्मक रूप की सूरत में, विशालतम देव-मन्दिरों के निर्माण में अपने निखरे हुए रूप के साथ मुखरित हुई चंदेल राजाओं ने अपनी अथाह शक्ति, अतुल समृ़द्वि, धर्मप्रियता तथा महानतम वैभव का प्रदर्शन इन विराट देवालयों के निर्माण का आदेश देकर अपने अपूर्व कला प्रेम का सौन्दर्यमय प्रदर्शन किया
पूर्व मध्य युग में, कलाकारों ने कला की समस्त विधाओं, वास्तु, स्थापत्य और मूर्तिकला में अद्भुत दक्षता प्राप्त कर ली थी इन कलाविदों ने प्रभूत मात्रा में अपने हस्तलाघव का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया इस काल की कला के भव्य प्रतीकों की आज भी मर्मज्ञ मुक्त कंठ से सराहना करते हैं
चंदेल राजाओं की कला में अत्यधिक रूचि थी, अतः उन्होंने कला को हर सम्भव संरक्षण प्रदान किया परिणामस्वरूप भारतीय कला के अन्तर्गत स्थापत्य एवं वास्तुकला का अत्यधिक विकास हुआ अनेक कलाविदों के अनुसार वास्तुकला, शिल्प विज्ञान एवं स्थापत्य कला का ही पर्याप्त है, यदि यह कहा जाए कि वास्तुकला का उद्भव एवं विकास मानव सथ्यता के विकास की कहानी को स्पष्ट करता है, तो इसमें किंचित मात्र भी संदेह नहीं है, इस युग के वास्तुविद एवं शिल्पकारों ने जिन अमर कृतियों की रचनाएं कीं, वे आज भी हमारे लिए सुखानुभूति, गौरव एवं गर्व का विषय बनी हुई है विवेच्य काल में वास्तुविदों द्वारा स्थापत्य में लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई पर विशेष ध्यान दिया गया, सूक्ष्मता एवं स्पष्टता इसकी अन्य विशेषताएं थीं स्थापत्य में लकड़ी व पत्थर का बहुतायत में प्रयोग किया गया चंदेलो के उत्थान काल से आरम्भ होकर उनके पतनोन्मुख होने के मध्य ही मन्दिरों का निर्माण किया जाना इस तथ्य का सूचक है कि चंदेल शासकों ने ही इनका निर्माण कराया था।
मध्यप्रदेश के छतरपुर शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित मन्दिरों का एक समूह है जिसे खजुराहो मन्दिर कहा जाता है इस साइट के कुछ लोग मानव कल्पना, इतिहास, वास्तुकला, विरासत, प्रेम और जुनून का प्रतीक मानते है खजुराहो न केवल यूनेस्कों की विश्व धरोहर स्थल है बल्कि भारत के आश्चर्यो मे से एक माना जाता है। ऐतिहासिक मिथकों, मानव कल्पना, कहानियों, कलात्मक, रचनात्मकता और स्थापत्य चमत्कार में समृद्व, ये मन्दिर प्राचीन भारत की अघ्यात्मिक शान्ति कला और वास्तुकला के प्रतिनिधि हैं खजुराहो मन्दिर का भव्य कलात्मक सृजन, तत्कालीन इंजीनियरों, कारीगरों और वास्तु -विदों की अनूठी कलात्मक कल्पना के परिचायक हैं ये मन्दिर उन राजाओं की अद्भुत स्थापत्य कला की प्रेम कहानी बड़ी सौम्यता और खामोशी के साथ वर्णन कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश में खजुराहो के समीपस्थ कंदरिया महादेव का मन्दिर (Kandariya Mahadeva Temple) भी, चंदेल-वंश के राजाओं के अलौकिक सौन्दर्य और कला के प्रति समर्पित निष्ठा, लगन और अनूठे प्रेम की यशोगाथा आज भी सुना रहा है यह चंदेल वंश के काल की विश्व को एक अनुपम भव्य, कलात्मक तथा विराट देन है इस भव्य मन्दिर की विराटता दर्शनाथियों को यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि इसका निर्माण मनुष्यों ने नहीं बल्कि दैत्यों ने किया होगा। अभिलेख तथा मन्दिरों की स्थापत्य कला शैली से यह प्रकट होता है कि खजुराहो के अधिकांश मंदिरों का निर्माण 950 से 1050 ईस्वी के बीच चंदेला राजा धंग तथा विद्याधर द्वारा किया गया था
जो 9 वी से 12 वी शताब्दी के दौरान उत्तरी और मध्य भारत के सबसे शक्तिशाली शासक बन गए थे ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार 12 वीं सदी में 85 मंदिर 20 वर्ग किलोमीटर में फैले थे। आज लगभग 22 मंदिर अभी भी खड़े है। इन आश्चर्य जनक मन्दिरो में से सबसे बड़ा मंदिर कन्दरिया महादेव का है।
चन्देल शासक विद्याधर ने महमूद गजनवी को दूसरी बार परास्त करने के बाद अपनी विजय की स्मृति को चिरकाल तक संजोए रखने के प्रतीक स्वरूप इस देवालय का निर्माण करवाया था विद्याधर द्वारा इस मन्दिर की पुष्टि में इसी मन्दिर के महामण्डप में लगा एक अभिलेख है जिस में विरिद नामक एक राजा का उल्लेख है और यह विरिद विद्याधर का ही दूसरा नाम हो सकता है
खजुराहो चंदेलो की प्राचीनतम राजधानी थी, किवंदती के अनुसार इसका कंदरिया नामाकरण, भगवान शिव के एक नाम कंदर्पी के अनुसार हुआ है। इसी कंदर्पी से कंडर्पी शब्द का विकास हुआ जो कालांतर में कंदरिया में परिवर्तित हो गया। बाहर से देखने पर इसका मुख्य द्वार एक गुफा यानी कि कंदरा जैसा नजर आता है शायद इसलिए इस मंदिर का नाम कन्दरिया महादेव पड़ा है।
यह चंदेला शासको का स्वर्णकाल था। यह माना जाता है कि यह हर चंदेला शासक ने अपने जीवनकाल में कम से कम एक मंदिर का निर्माण किया था। इसलिए सभी खजुराहों मंदिरो का निर्माण किसी एक चंदेल शासक द्वारा नहीं किया गया हैं। लेकिन मंदिर निर्माण चंदेल शासको की परंपरा थी
खजुराहो धार्मिक/सांस्कृतिक राजधानी थी सम्पूर्ण खजुराहो में प्रवेश/निकास के लिए 8 द्वार थे प्रत्येक द्वार दो खजूर/ताड़ के वृक्षों से भरा हुआ है खजुराहो में मौजूद इन खजूर के पेड़ो के कारण इसका नाम खजुरा-वाहिका पड़ा आगे चलकर इतिहास में खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध हो गया। चन्दवर दाई की कविताओं में इसे खजूरपुर कहा गया
मंदिरों को तीन परिसरो में विभाजित किया गया है पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी। इनमें से पश्चिमी परिसर का कंदरिया महादेव मन्दिर (Kandariya Mahadeva Temple) खजुराहो समूह मंदिरों का सबसे बड़ा और सबसे ऊंचा और सबसे प्रसिद्व सुन्दर हिन्दू मन्दिर है मन्दिर का निर्माण काल 1065 ईस्वी का है मन्दिर 6500 वर्ग फीट के क्षेत्र मे बनाया गया है और इसकी उँचाई जमीन से लगभग 117 फीट है इसकी लम्बाई 109 फीट चौड़ाई 66 फीट और उँचाई 101 फीट है
मन्दिर अलंकृत नक्काशी और मूर्तियों से सुशोभित हैं। प्रवेश द्वार पर एक आयताकार हॉल है जिसे अर्ध मंडप कहाँ जाता है जो मंडप नामक एक केन्द्रीय स्तंभ हॉल की और जाता हैं। जो गर्भगृह की और जाता हैं वर्गाकार गर्भगृह में साढ़े चार फुट का संगमरमर का शिवलिंग स्थापित किया गया है जिसकी पूजा नित्य होती है शिवरात्रि तथा वसंत पंचमी को इस मन्दिर में विशेष भक्तों की भीड़ उमड़ती है। गर्भगृह के सरदल पर विष्णु, उनके दाएँ ब्रहमा एवं बाएँ शिव दिखाये गएं है जो धर्म सहिष्णुता का प्रतीक है गर्भगृह के चारों और से प्रदक्षिणापद युक्त हैं। पूरे कलात्मक सजावट और इमारत में वास्तुकला को एक निश्चित हिंदू अइक नो ग्राफिक पैटर्न मे प्रदर्शित किया गया है। गर्भगृह के ऊपर मुख्य शिखर है मुख्य शिखर कैलाश पर्वत को दर्शाता है शिखर मन्दिर में प्रतिष्ठित देवता की विश्व व्यापी सार्वभौम सत्ता के प्रतीक है। जो 35.3 मीटर की उँचाई के साथ खड़ा है इस शिखर के चारों ओर अन्य 84 छोटे-छोटे शिखर संलग्न है जो ऊपर की और छोटे होते गए है जिन्हें उरूश्रृंग कहते हैं जो छोटी मीनारों की भाँति मुख्य शिखर से जुड़े हुए है इसके प्रदक्षिण-पथ में बहुत से स्तम्भ बड़े सुन्दर ढ़ंग से बनाएं गए है। यह मन्दिर हिन्दू भगवान शिव को समर्पित हैं मन्दिर की दीवारों, खंभो और छतो के बाहरी और आंतरिक दोनों में जीवन की चार बुनियादी गतिविधियां का चित्रण है-मोक्ष, काम, धर्म और अर्थ।
कर्निघम के अनुसार इसकी बाहृय दीवारों पर लगभग 646 मूर्तियाँ स्थापित है। और अन्दर की दीवारों पर 226 मूतियाँ स्थित है जिनमे अधिकांश 2 1/2 X 3 आकार की है जो और भी आकर्षक लगती है मन्दिर में शायद ही कोई स्थान हो जो मूर्तियों से अलंकृत न हो इस मन्दिर का मुख पूर्व की और है कंदरिया महादेव मन्दिर (Kandariya Mahadeva Temple) खजुराहो के पश्चिमी समूह का यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल में सबसे प्रभावशाली संरचनाओं में से एक है। यह पूरे परिसर में सबसे बड़ा और सबसे सुन्दर मन्दिर है इस इमारत के सुरूचिपूर्ण अनुपात और इसकी मूर्तिकला का विस्तार मध्य भारत की इस कलाकारीय विरासत का सबसे परिष्कृत उदाहरण है कंदरिया महादेव मन्दिर के बाद, खजुराहो के कलाकार ने कभी भी इतनी ऊँची या अलंकृत नही की महादेव मन्दिर की योजना लक्ष्मण और विश्वनाथ मन्दिर के समान है।
प्राचीन व पूर्व मध्य युग की अभियांत्रिकी अद्भुत और प्रशंसनीय है उस युग में जब आधुनिक युग की तरह जब भौतिक साधनों का उत्रयन नहीं हुआ था, तब भी इंजीनियरों ने अपने अनूठे बुद्वि कौशल से मन्दिर का पूरा हिस्सा पन्ना खदान के स्थानीय गुलाबी व मटमैले ग्रेनाइट की नींव के साथ बलुआ पत्थर से बनाया गया था। बलुआ पत्थर का सबसे बेहतर गुण इन मूर्तियों में इस्तेमाल किया गया हैं कुछ दूर से देखने पर लगता है सैंड स्टोन से बने मंदिर को नहीं बल्कि चंदन की लकड़ी पर तराशी गयी कोई भव्य कृति देख रहें हैं। बलुवा पत्थर से बना मंदिर की दीवारों, स्तम्भों एवं मूर्तियों में चमक का कारण चमड़े से जबरदस्त घिसाई से इतने खूबसूरत बने हुए हैं कि पर्यटक उन्हे देखकर हैरान रह जाते है। मंदिर में परकोटा का पूर्ण अभाव है यानी मंदिर चहार दीवारी में नहीं हैं मंदिर में पहुँचने के लिए सीढ़ीयों से होकर 13 ऊँचे चबूतरों पर चढ़ना होता हैं, जिस पर यह मंदिर बना हैं। इनके अंगों में एक विचित्र ढलाव हैं, क्रमशः पहले अंग की अपेक्षा दूसरा अंग अत्यधिक ऊँचाई पर बना हुआ हैं। गर्भगृह अंत में सबसे ऊँचाई पर बना हैं, मंदिर में मुख्य प्रतिमा कंदरिया महादेव की हैं, मंदिर की मुख्य विशेषता इसके अंग प्रत्यंगो पर किया गया मूर्तन हैं, कलामर्मज्ञा स्टेला क्रेमरिश के अनुसार कामलीला प्रधान खजुराहो की मूर्तियाँ भक्तजनों को दिखाने के लिए नही, अपितु उनके अस्तित्व की मात्र अनुभूति कराने के लिए की गयी थी। स्थापत्य के साथ मूर्तिकला का यह संगम इसकी कलात्मकता में अद्भुत रस भर देता हैं।
वास्तुकला की दृष्टि से इस मन्दिर की विशेषता यह है कि मन्दिर के सभी अंग भलीभंाति समन्वित है, मन्दिर के समस्त अवयव एक सुव्यवस्थित ढंग से एक दूसरें से जुड़े हुए है, गर्भगृह, मंडप, अर्ध मंडप आदि मन्दिर मे सभी अवयव इमारत के अविच्छिन अंग दिखलायी देते है। स्थान, योजना, विन्यास, निर्माण सामग्री, शिखर, आमलक मन्दिर की अन्य विशेषता दीवारों के मध्य भाग का अंलकरण आदि इनके निर्माण का उददे्श्य भी अलग-अलग है। दीवारों के चारों और दो या तीन चित्र वल्लारी है जिन पर उभरी हुई आकृतियां है कुछ स्त्रियों की उभरी हुई आकृतियॉ विशेष उल्लेखनीय है। मन्दिर की दीवारों पर उत्कीर्ण मूर्तियों में देवी, देवता, अप्सरा के अलावा काम-कला का खुला प्रदर्शन किया गया है। र्मिन्दर पर मिथुन एवं रतिमूर्तियों के निर्माण का विधान मध्यकालीन शिल्प ग्रन्थों में भी प्रदान किया गया है शिल्प प्रकाश में मिथुनबन्ध मूतियों की विशद चर्चा की गयी है बलुआ पत्थर से निर्मित इन दीवारों मे से एक मुख्य आकर्षण कामुक कला है।
इस मन्दिर के प्रवेश द्वार का तोरण अभिनंदनीय है इस पर देवी-देवताओं, गंधर्वों आदि के अंकन है अर्धमण्डप की छतें अनोखी कला से सुसज्जित है मन्दिर की बहिर्मुखी दीवार पर नीचे आठ दिग्पालों की मूर्तियाँ है मन्दिर के उत्तरी, दक्षिणी तथा पश्चिमी कोनों पर स्तम्भधारित बड़े-बड़े आलय है, जिनमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश की साक्षात् मूर्तियाँ अथवा उनके अवतारों की मूर्तियों में विविध नृत्य मुद्राएं और भाव-भंगिमाओं का दिग्दर्शन है ऐसा मालूम होता है कि मानो ये मूर्तियाँ अपने सौन्दर्य से मुनियों और तपस्वियों को आकर्षित कर रही हैं और उन्हें उनकी ध्यान समाधि डिगाने का प्रयत्न कर रही है महादेव के इस मन्दिर के शिखरों पर क्रमशः आमलक बड़े होते चले गए हैं जिसके ऊपर अमृत कलश आघृत है, कलश तथा आमलक सृष्टि के शुभारम्भ के प्रतीक है तथा आमलक त्रिदेवों का निवास स्थान बताया गया है। ’’उरूश्रृंग’’ व ’’अंतराल’’ मंदिर स्थापत्य की अपनी पहचान हैं। मंदिर के ऊपर निकली हुयी मीनारनुमा आकृति को ’’उरूश्रृंग’’ तथा गर्भगृह और बरामदे के बीच लंबे गलियारे को ’’अंतराल’’ कहते हैं।
वास्तुकला के साथ-साथ, कंदरिया महादेव (Kandariya Mahadeva) का मूर्तिशिल्प भी अनुपम है इसमे कलात्मक प्रतिभा तथा धार्मिक निष्ठा का योग रहा है कंदरिया महादेव मन्दिर आर्य शैली के अन्तर्गत ’’नागर’’ या ’’शिखर’’ शैली में निर्मित है मन्दिर की संरचना ठोस चिनाई वाली एक ऊँची आधार पीठिका पर हुई है, जिस पर विभित्र मण्डप निर्मित थे जिनमें से कुछ अब भी विद्यमान है दीवारों पर खुदी हुई मूर्तियाँ शिल्पकला के उत्कृष्ट नमूने है मन्दिर का कलेवर काम-शास्त्रीय मूर्तियों से भरा पड़ा है। महाराज भोजप्रणीत समरांगण सूत्रधार में भी मिलता है उक्त ग्रन्थ में मन्दिर की भित्रियों पर कामकला मूर्तियों के अंकन को शास्त्रीय मान्यता प्रदान की गयी है सम्भवतः ऐसा दुष्टात्माओं से मन्दिर की रक्षा के लिए शिल्पियों ने किया होगा जिन पर सौदर्यमयी विभिन्न मूर्तियों का विभिन्न मुद्राओं में भव्य व अभूतपूर्व अकंन है।
मन्दिर को पत्थर की मूर्तिकला के साथ सजाया गया है जिन पर सौंदर्यभयी विभित्र मूर्तियों का विभित्र मुद्राओं में भव्य व अभूतपूर्व अंकन है जिसमे रोजमर्रा की जिंदगी के साथ-साथ जानवरों और मनुष्यों के मामलों को दर्शाया गया है। उदाहरण के लिए प्रवेश द्वार की बालकनी को मगरमच्छ स्तंभों से झरने वाले मगरमच्छों की एक कलात्मक नक्काशी से भरा हुआ है यहाँ मूर्तिकार ने रेखीय ब्योरों के साथ छरहरी तथा लंबी आकृतियों को वरीयता दी है मंदिर को विश्व प्रसिद्वि दिलाने में इन मूर्तियों का बहुत बड़ा योगदान हैं इन्हें वस्त्राभूषणों से अलंकृत अलौकिक और नृत्य-मुद्राओं में बनाया गया है रतिक्रिया में संलग्न ऐसी मूर्तियों में सामान्य और असामान्य दोनों प्रकार के संयोग के दृश्य है प्रवेश मे सीढ़ि़या है जिन्हे बहुत खूबसूरती से मालाओं से सजाया गया है इस मन्दिर को भव्य मूर्तियों और अत्यधिक विस्तृत नक्काशी के साथ अलंकृत किया गया है। कला की दृष्टि से अन्य मन्दिरों की तुलना मे यह सर्वाधिक सुन्दर एवं श्रेष्ठ है क्योंकि इस मन्दिर मे तत्कालीन भारतीय जनजीवन का सजीव एवं कलात्मक अंकन हुआ है। इस कारण यह अत्यन्त ही प्रभावशाली लगता है तथा तत्कालीन वास्तुकला के विकास की और ध्यान आकृष्ट करता है। इस प्रकार खजुराहो में मूर्तिकला की प्रचुरता, कल्पना की भव्यता तथा संपूर्णता भारतीय कला में उत्कृश्ट हे। खजुराहो के कला सौंदर्य की अपनी एक दुनिया हैं। आलिंगनबद्व प्रेमी-प्रमिका, जिन्हें लगभग उत्कीर्ण करके बनाया गया है, गुंजित मनोवेग को प्रदर्शित करते हैं। मुस्कुराहट में थोड़ा-सा परिवर्तन करके, अभिव्यक्ति में थोड़ा-सा अंतर लाकर मुद्रा में विभिन्न प्रकार के मनोभावों को दर्शाया गया है। खजुराहो की मूर्तियाँ भारतीय मूर्तिकला की इतनी महान् कलाकृतियाँ है कि इसकी अलग-अलग तथा साथ ही संचयी रूप में सराहना की जा सकती है। देवांगना देसाई तथा कृष्णदेव प्रभृति विद्वानों का मत है कि खजुराहो के मन्दिरों पर कामलीला-सबंधी मूर्तियाँ अन्य मूर्तियों के अनुपात में अति अल्प है, फिर भी वे अपनी विविध काम-मुद्राओं के कारण विश्वविख्यात है।
वास्तव में खजुराहों जैसी शायद ही कोई अन्य जगह है जहाँ मूर्तियाँ इतनी बड़ी उत्कृष्टता के साथ सभी प्रकार की मानवीय भावनाओं को चित्रित करती है ये मन्दिर भी महिलाओं को उसके विविध रूपों में मानते प्रतीत होते हैं। उन्हें जम्हाई लेना, खरोचंना, घुमाना, पैरो से कॉटा निकालना, बच्चों और पालतू जानवरों के साथ खेलना, तोता देखने के लिए आईना देखना बांसुरी और वीणा बजाना और प्रेम- पत्र लिखती महिला जिसके दाहिने कंधे के पीछे नाखूनों के चिहृ हैं जो उसके प्रेमी ने उसे आलिंगनबद्व करते समय लगा दिए थे आदि के रूप में चित्रित किया गया है।
कंदारिया महादेव मंदिर (Kandariya Mahadeva Temple) भारत में ताजमहल और कंबोड़िया के अंगोरवाट खमेर मन्दिर के साथ उन शानदार उदाहरणों में से एक है भारत धार्मिक कला के सबसे शानदार उदाहरणों में से एक है और इसकी तुलना यूरोप के पुनजार्गरण वास्तुकला से की जा सकती है।
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