नारी श्रद्धा है, शक्ति है, अन्नपूर्णा है, वह सिद्धि भी है और रिद्धि भी है, इन संकेतों को मनुस्मृति में ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते .............’ कहकर समाज का आधार स्तम्भ माना गया। प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय चिति और चिंतन तथा मनन में स्त्री को गृहलक्ष्मी का स्थान दिया गया, निखिल विश्व में नारियों को नैतिक आदर्शों की संरक्षिका मानकर विश्व का कल्याण करने का मार्ग प्रशस्त किया गया।
हमारा वैदिक विश्वास है कि ईश्वर की इस अनुपम कृति को पुरुषों की तरह कुछ ऐसे अधिकार दिए गए, जिन्हें कभी छीना नहीं जा सकता। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर एक्ट में स्त्री-पुरुषों के समान अधिकार और वैदिक युग से आजादी तक भारत में आज भी वहीं प्राचीन विश्वास-‘माता निर्माता भवति’ मानकर संविधान में महिलाओं को स्वतन्त्रता, समानता के मौलिक अधिकार और कर्त्तव्य सुनिश्चित किए गए।
स्वतन्त्रता के पूर्व देश में महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखते हुए संविधान में महिलाओं को समाज के सभी क्षेत्रों में विकास हेतु अवसर उपलब्ध कराने के लिए कुछ विशेष व्यवस्थायें की गई है। महिला अधिकारों को संरक्षित करने तथा महिलाओं को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराने वाली संवैधानिक व्यवस्थाओं का विवरण इस प्रकार है-
प्रस्तावना- प्रस्तावना में ‘प्रतिष्ठा और अवसर की समता’ तथा ‘व्यक्ति की गरिमा’ इत्यादि वाक्यांशों का प्रयोग कर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि भारत में अब भेदभाव जैसी पुरानी मान्यताओं को कोई स्थान नहीं मिलेगा।
अनुच्छेद 14- इस अनुच्छेद के द्वारा कानून के समक्ष समानता और कानून द्वारा घोषणा की गई है, चाहे वह नारी हो या पुरुष।
अनुच्छेद 15(1)- नागरिकों में जाति, धर्म, लिंग एवं मूल के आधार पर विभेद नहीं करने का प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 15(3)- में सरकार की तरफ से महिलाओं एवं बच्चों को कुछ विशेष सुविधा प्रदान की गई है। महिलाओं व बच्चों की स्वाभाविक प्रकृति ही ऐसी होती है जिसके कारण उन्हें विशेष संरक्षण की आवश्यकता होती हैं।
अनुच्छेद 16(2)- लिंग के आधार पर राज्य के किसी संगठन में कार्यरत् कर्मियों में विभेद नहीं करने का प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 19- वाक्-स्वातत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातत्र्य का अधिकार, शान्तिपूर्वक और निरायुद्ध सम्मेलन का अधिकार संगम या संघ बनाने का अधिकार, भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का अधिकार, निवास करने और वास करने का अधिकार आदि।
अनुच्छेद 21- समान रुप से प्राण व दैहिक स्वतन्त्रता से वंचित न करना।
अनुच्छेद 23-24- भारतीय संविधान द्वारा नारी क्रय-विक्रय तथा बेगार प्रथा पर रोक लगाई गई है।
अनुच्छेद 39 (घ) - के अन्तर्गत स्त्री-पुरुष दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 42- महिलाओं के लिए प्रसूति सहायता।
अनुच्छेद 43- स्त्री एवं पुरुष कर्मकारों के लिए, निर्वाह मजदूरी आदि की व्यवस्था करने का निर्देश देता है। क्योंकि राष्ट्र के आर्थिक विकास में भागीदार स्त्री-पुरुष श्रमिकों की गरिमा एवं उनके व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए उन्हें निर्वाह योग्य मजदूरी दिया जाए तथा उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना अपरिहार्य है।
अनुच्छेद 43(ए)- उद्योगों के प्रबंध में स्त्री-पुरुष कर्मकारों की भागीदारी सुनिश्चित करने का राज्य को निर्देश है।
अनुच्छेद 47- पोषाहार जीवन-स्तर तथा लोक स्वास्थ्य में सुधार करना सरकार का दायित्व।
अनुच्छेद 51(ए), (ई)-प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि, वे ऐसी किसी भी परम्परा का अनुपालन नहीं करें जो महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध है।
अनुच्देद 243 घ, न- पंचायती राज एवं नगरीय संस्थाओं में 73वें 74वें संशोधन के माध्यम से महिलाओं को आरक्षण की व्यवस्था। जिसके परिणामस्वरुप देश की त्रिस्तरीय पंचायतों में 90 लाख महिलाओं को जनप्रतिनिधित्व के रुप में राजनीति और विकास के रुप में भागीदारी के अवसर प्राप्त हुए है।
अनुच्छेद 330- प्रस्तावित 84वें संशोधन के द्वारा लोक सभा में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था।
अनुच्छेद 332- प्रस्तावित 84वें संशोधन द्वारा राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था।
किन्तु क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों की अदूरदर्शिता और मूल्यहीन राजनीति के कारण सार्थक प्रयत्नों से किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुँचा यह विधेयक भारतीय महिलाओं की सामाजिक और व्यवहारिक समस्या का हल है। भारतीय राजनीति में वोट बैंक के रुप में महिलाओं की भूमिका तो महत्वपूर्ण है परन्तु निर्णय प्रधान संस्थाओं में महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नही मिला है।
महिलाओं की उन्नति में सहायता के लिए अनेक अधिनियम बनाए गए हैं, इसमें से कुछ इस प्रकार हैः-
सती प्रथा निरोधक अधिनियम, 1829 - हिन्दु विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856, बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929, हिन्दू महिलाओं का सम्पत्ति अधिकार, 1937, हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम, (संशोधन 1956), 1929, हिन्दू नाबालिग तथा संरक्षकता अधिनियम, 1956, हिन्दू गोद लेना तथा भरण पोषण अधिनियम, 1956, भारतीय तलाक (संशोधित) अधिनियम, 2001, परिव्यकताओं के लिए गुजारा भत्ता (संशोधन) अधिनियम, 2001।
कारखाना अधिनियम, 1948- कर्मकारों के स्वास्थ्य, सुरक्षा, कल्याण, काम के घण्टे तथा अल्पव्यस्कों को नियोजित करने के लिए कानून बनाए गए है। इन नियमों में महिलाओं के लिए अलग से व्यवस्था की गई है। स्त्रियाँ केवल रात दस बजे से प्रातः 5 बजे तक ही उपलब्ध नहीं है।
बागान श्रम अधिनियम, 1951- महिला कर्मकारों को अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए आवश्यक रुप से अवकाश दिया जाना।
खान अधिनियम, 1952- भूमिगत खानों में महिलाओं के नियोजन पर रोक लगाना।
कर्मचारी राज्य बीमा विनियमन अधिनियम, 1952- प्रसूति लाभ के लिए दवा को चिकित्सकीय प्रमाण-पत्र की तिथि से मान्य किया जाना।
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 (संशोधित 1976)- विशेष विवाह अधिनियम 1954 को संशोघित करके अब कन्या को अधिकार है कि वह बालिक होने से पहले की गई शादी को रद्द कर सकती है। अब विधवा विवाह, अन्तर्राजातीय विवाह और प्रेम विवाहों को कानूनी संरक्षण प्राप्त है।
वेश्यावृत्ति निवारण अधिनियम, 1956 (संशोधित 1986)- महिलाओं को वेश्यावृत्ति के अभिशाप से मुक्त कराने के लिए अधिनियम बनाया गया न्यायालय द्वारा अपराधियों को दण्ड की व्यवस्था करने और सख्ती के साथ लागू करने के लिए 1986 में इसे संशोधित किया गया और इस अधिनियम के अन्तर्गत स्त्रियों और कन्याओं का अनैतिक व्यापार करना एक दण्डनीय अपराध है।
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 (संशोधित 1986)- समाज में दहेज की कुप्रथा को रोकने के लिए बनाया गया इसको भी वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल बनाने के लिए इसे 1986 में संशोधित किया गया इसके अन्तर्गत दहेज लेना और देना दोनों दण्डनीय अपराध है।
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976- समान पारिश्रमिक का भुगतान करने और नियोजन में लिंग के आधार पर स्त्रियों के विरुद्ध विभेद किए जाने का निवारण करने और उससे सम्बन्धित विषयों पर उपलब्ध के लिए अधिनियमित किया गया है।
प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1981 (संशोधित 2016)- कार्य दिवस के 80 दिन पूर्ण होने पर महिला कर्मियों को प्रसव/गर्भपात के लिए आवश्यक रुप से निर्धारित अवकाश तथा चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था। मातृत्व अवकाश की छुट्टी अधिकतम 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह किये जाने का प्रावधान है सबसे अधिक प्रसूति अवकाश देने वाला विश्व का तीसरा राष्ट्र बन गया कनाडा (50 सप्ताह) एवं नॉर्वे (44 सप्ताह)।
वीडी या सिगार कर्मकार अधिनियम, 1966- महिला कर्मकारों के निर्धारित सीमा में होने पर उनके बच्चों के लिए ‘शिशु सदनों’ की अनिवार्य व्यवस्था
ठेका श्रम अधिनियम, 1970- महिला श्रमिकों से बागनों में प्रातः 6 बजे से सायं 7 बजे के बीच 9 घंटे के बाद काम कराने पर प्रतिबंध
चूना, पत्थर और डोलोमाइट खान श्रमिक कल्याण निधि अधिनयम, 1972, लोह मैंगनीज एवं अयस्क खान श्रमिक कल्याण निधि अधिनियम, 1976, बीडी कर्मकार कल्याण निधि अधिनियम, 1976- इन अधिनियमों के अन्तर्गत नियुक्त सलाहकार समिति में एक महिला सदस्य की नियुक्ति अनिवार्य करना।
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976- समान कार्य के लिए महिलाओं को भी पुरुषों के समान पारिश्रमिक की व्यवस्था।
बाल-विवाह निषेध अधिनियम, 1976- संविधान द्वारा कम उम्र की बालिकाओं (बालकों) के विवाह पर प्रतिबन्ध।
अन्तर्राज्यिक प्रवासी कर्मकार अधिनियम, 1979- कुछ विशेष नियोजनों में महिलाओं के लिए अलग से शौचालय, स्नानघरों की व्यवस्था करना।
मातृत्व लाभ अधिनियम 1981- बागान, कारखाने, खान व अन्य इसी प्रकार के कठिन कार्यों में समान रुप से लागू होता है। मातृत्व अवकाश की अधिकतम अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह किए जाने का प्रावधान है।
स्त्री अशिष्ट निरुपण निषेध अधिनियम, 1986- विज्ञापनों, पोस्टरों एवं अन्य माध्यमों के द्वारा महिलाओं के अश्लील चित्र एवं प्रदर्शन को प्रतिबन्धित कर दिया गया है।
सती निषेध अधिनियम (संशोधित 1829), 1987- महिलाओं को उनके पति की मृत्यु के बाद जिन्दा जलाए जाने पर या सती होने पर प्रतिबन्ध।
73वें व 74वें संशोधन अधिनियम, (110वें संविधान संषोधन) 1993- महिलाओं को त्रिस्तरीय पंचायतों में 50 प्रतिषत आरक्षण की व्यवस्था।
प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम (विनियम तथा दुरुपयोग निवारण अधिनियम, 1972), 1994 - गर्भावस्था में नष्ट करने के उद्देश्य से, माता भू्रण का पता लगाने से रोकने के लिए लागू किया गया है। इस अधिनियम का उल्लंघन करने वालों पर 10-15 हजार रुपये तक जुर्माना तथा उसे 5 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
घरेलू हिंसा निवारक अधिनियम 2005- विवाहित स्त्री के साथ क्रूरता का वयवहार, विवाह जुड़े अन्य अपराध, अपहरण, आदि से महिलाओं को शोषण से बचाने के लिए भरसक प्रयास किए गए है।
केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड 1953 - इसका मुख्य कार्य समाज कल्याण एवं महिला विकास के क्षेत्र में विशेष प्रयास करना है।
राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 - के अन्तर्गत 31 जनवरी, 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई। यह एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है। इसकी पहली अध्यक्ष श्रीमती जयंती पटनायक है। आयोग का प्रमुख कार्य महिलाओं को दी गई सांविधानिक और विधिक सुरक्षाओं से सम्बन्धित विषयों का अध्ययन करना और निगरानी करना है।
इसके अतिरिक्त भारतीय दण्ड संहिता में स्त्री की मर्यादा के विरुद्ध कार्य करने पर संहिता की धारा 354 के अन्तर्गत दण्ड की व्यवस्था की गई है। धारा 509 में भी स्त्री की लज्जा का अनादर करने वाले संकेतों अथवा प्रदर्शन पर दण्ड की व्यवस्था है। धारा 377 के अन्तर्गत बलात्कार को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है।
स्वामी विवेकानन्द ने महिलाओं को निर्णयों में अवसर देने की वकालत करते हुए कहा था, ”किसी सभ्यता का मूल्यांकन इस बात से किया जा सकता है कि वह अपनी महिलाओं के साथ कैसा बर्ताव करता है। आज महिलाएँ दुनिया में अपनी जगह और पहचान बना चुकी है। जिस दिन नारी को अपनी शक्ति का अहसास हो जाएगा, उस दिन उस पर होने वाले अत्याचार का अंत हो जाएगा, उसके पास साहस है, शक्ति है, सिर्फ जरुरत है उसे हवा देने की। रानी लक्ष्मीबाई के बारे में कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने ठीक ही लिखा है कि “हमको पाठ पढाने आई बन स्वतन्त्रता नारी थी“…………… प्रत्येक दृष्टि से नारी श्रेश्ठों में श्रेश्ठ है सर्वोत्तम है।
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