China in the circle of Indian diplomacy

China in the circle of Indian diplomacy

30 Jul 2024 23:34 PM | Me Admin | 82

भारत-चीन संधि के तुरंत बाद चाऊ-एन-लाई भारत आए थे। ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई‘ की धुन पर नेहरूजी और उनके कम्युनिस्ट मित्रों ने सारे देश को नचाया था। शांति और मैत्री के कबूतर उड़ाते हुए सह-अस्तित्व और पंचशील के सिद्धांतों की कसमें खाई गई थीं। चाऊ ने भारत से मनभावन बातें तो खूब कीं, किंतु वास्तविक मित्रता का हाथ नहीं बढ़ाया। चाऊ नेहरूजी को लुभाकर चले गए थे और आठ साल बाद भारत पर आक्रमण कर दिया था। नेहरूजी ने चाऊ द्वारा घोषित मित्रता को यह तथ्य भुलाकर वास्तविक मित्रता मान लिया था कि किन्हीं भी दो राष्ट्रों में वास्तविक और स्थायी मित्रता होती ही नहीं हैं। मित्रता का छलावा ही कूटनीति का प्रमुख अंग होता है। किंतु भारत का नेतृत्व इस कूटनीतिक छलावे में इतना भावविभोर हो उठा था कि उसने उस समय कूटनीति परिपक्वता ही नहीं अपने राष्ट्र हित से भी अपना नाता तोड़ लिया था। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरूजी ने देश के राजनीतिक नेतृत्व को चेताने का प्रयास किया था, तो कम्युनिस्टों ने हो-हल्ला मचाकर नेहरूजी को परिपक्वता से सोचने ही नहीं दिया।

India and China Flag

    तब से अब तक न चीन की प्रतृत्ति बदली है और न रणनीति। वह एशिया का सर्वशक्तिमान अधिपति बनने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। चीन अपने पड़ोसी देशों की नब्ज टटोल रहा हैं। आत्मविश्वास से लवरेज भारत अब अपनी सीमित क्षमताओं का पूरा-पूरा इस्तेमाल करने लगा हैं। पाक को चीन से अलग करना एक चुनौतीपूर्ण काम होगा क्योंकि दोनों की मंशा भारत को कई मोर्चो पर असफल करना है। पाक-चीन गठजोड़ की कारगर काट बाया वाशिगंटन ही संभव हो सकती हैं। यदि भारत सरकार चीनी राष्ट्रपति के शब्दों पर विश्वास करके सीमाओं पर शांति की आशा कर रही होगी, तो देश को पुनः 1962 की पुनरावृत्ति का सामना करना पड़ सकता हैं।

India's map

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