जी-20 में फ्रंट फुट पर होंगे मोदी (G20) II What is G20?

जी-20 में फ्रंट फुट पर होंगे मोदी (G20) II What is G20?

14 Jul 2024 23:15 PM | Me Admin | 138

         जी-20 की अध्यक्षता के दौरान, हम अपने अनुभव, ज्ञान और प्रारूप को दूसरे देशों, विशेषकर विकासशील राष्ट्रों के लिए एक आदर्श के रूप में पेश करेंगे। हमारी जी-20 में प्राथमिकताएं न केवल इस समूह के सहयोगी देशों, बल्कि हमारे साथ कदम बढ़ाने वाले दुनिया के दक्षिणी हिस्से के देशों, जिनकी बातें अक्सर अनसुनी कर दी जानी हैं। के साथ परामर्श से निर्धारित की जाएगी। हमारी प्राथमिकताएं एक पृथ्वी’ को संरक्षित करने, हमारे एक परिवार में सद्भाव पैदा करने और हमारे एक भविष्य  को आशान्वित करने पर केंद्रित होगी। अपनी धरती को बेहतर बनाने के लिए, हम भारत की प्रकृति की देखभाल करने वाली पंरपरा के आधार पर हम स्थायी और पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली को प्रोत्साहित करेगें। दुनिया के कद्दावर देशों के समूह जी-20 के राष्ट्राध्यक्षों का शिखर सम्मेलन सितंबर 2023 में होने वाला हैं। इस सम्मेलन का मुख्य मुद्दा है कि ऊर्जा सुरक्षा व खाद्य संकट, बहुपक्षीय और बहुराष्ट्रीय एजेंसियों में सुधार आंतकवाद से मुकाबला, नये और उभरते खतरे, वैश्विक कौशल मैंपिग, आर्थिक स्थिरता और विकास के साथ-साथ मानवीय सहायता और आपदा राहत जैसे अहम मुद्दों पर भी चर्चा होने की उम्मीद हैं। भारत के लिए जी-20 एक पसंदीदा मंच हैं। यह संयुक्त सुरक्षा परिषद की तुलना में अधिक समावेशी और प्रतिनिधिक हैं। मेरा मानना हैं कि हमेशा की तरह इस सम्मेलन में भी हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रंट फुट पर ही खेलने वाले हैं।

    जी-20 की स्थापना सन् 1999 में एशियाई वित्तीय संकट के बाद हुई थी। लेकिन इसके पीछे 1975 में बने जी-7 या सात देशों का समूह था। यह सात देश थे-अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रंIस, इटली और कनाडा यानी यह उस वक्त के सबसे अमीर देशों का संगठन था। इसकी सालाना बैठकों में अर्थनीति के साथ-साथ राजनीति और सुरक्षा से जुड़े मामलों पर भी चर्चा होती थी। साल 1998 में रूस को भी इस समूह का सदस्य बनाया गया और तब से इसे जी-8 कहा जाने लगा। हालांकि, 2014 में रूस को बाहर करके इसे फिर से जी-7 बना दिया गया। इसकी वजह थी कि रूस ने यूक्रेन के प्रांत क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था। वैसे, रूस जी-20 का सदस्य हैं, लेकिन इस बार फिर रूस के यूक्रेन पर हमले का सवाल इस संगठन में विवाद का विषय बना हुआ हैं।

    जी-20 दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का संगठन हैं। यह समूह वैश्विक जीडीपी के 80 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार के 75 फीसदी, दुनिया की दो-तिहाई आबादी और करीब 50 प्रतिशत से ज्यादा क्षेत्रफल का प्रतिनिधित्व करने वाले इस समूह का एजेंडा पूरे विश्व को प्रभावित करता हैं। जी-20 के देशों के पास दुनिया के समुद्र तट का 45 प्रतिशत और इसके विशेष आर्थिक क्षेत्रों का 21 प्रतिशत हिस्सा हैं। 2008 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के बाद से समूह वार्षिक सम्मेलन आयोजित करता हैं और बारी-बारी से अध्यक्षता का हस्तांतरण करता हैं। यह व्यापक विचार-विमर्श के माध्यम से दुनिया की आर्थिक व विकास संबंधी प्राथमिकताओं को आकार देता हैं। साथ ही, समकालीन दौर की प्रमुख चुनौतियो का समाधान निकालने की दिशा में सक्रिय रहता हैं।

    पिछले कुछ वर्षों में इसके विचार-विमर्श के एजेंडे का विस्तार हुआ हैं। वैश्विक वित्तीय प्रणाली और आर्थिक विकास के अलावा अब यह जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, बुनियादी ढांचे, निवेश, ऊर्जा, रोजगार, भ्रष्टाचार, कृषि, नवाचार आदि मुद्दों को संबोधित करता हैं। जी-20 अध्यक्षता के दौरान हम जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा, सशक्त सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, सार्वजनिक लाभ के लिए तकनीक के प्रयोग और 2030 के लिए एसडीजी एजेंडे को गति प्रदान करने की दिशा में रचनात्मक नेतृत्व प्रदान करने के लिए तत्पर हैं। इधर, भारत नीली अर्थव्यवस्था पर राष्ट्रीय नीति को अंतिम रूप दे रहा हैं। एक बार तैयार हो जाने पर यह नीति अन्य जी-20 देशों के लिए एक मॉडल के रूप में उपयोगी हो सकती हैं। हालांकि द्विपक्षीय विवाद और आंतरिक राजनीतिक घटनाक्रम गैर-सरकारी क्षेत्र हैं। लेकिन भाग लेने वाले नेता ऐसे मुद्दों पर ध्यान देते हैं। यह अकल्पनीय हैं।

    भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं। भिन्न-भिन्न पंथों, भाषाओं और संस्कृतियों के सबसे सशक्त प्रतिनिधियों में से एक हैं। विविधता, सौहार्द और सह-अस्तित्व की हमारी समृद्ध विरासत रही हैं। इन्हीं भावनाओं के अनुरूप ही भारत ने अपनी अध्यक्षता की थीम वसुधैव कुटुंबकम् यानी एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य विषय पर आधारित होगी। इसका आशय संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानने से हैं। इसके माध्यम से भारत विश्व को आश्वस्त करना चाहता हैं कि वह केवल अपना ही नहीं, बल्कि समस्त विश्व के कल्याण की कामना करता हैं और उसके लिए प्रयासरत रहता हैं। कोविड महामारी के दौरान भारत का अनुकरणीय आचरण इस थीम के संदेश से पूरा न्याय करता हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस समय जो अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां बनी हैं, उनमें चाहे पश्चिमी देश हो या उनका धुर विरोधी रूस और उनके टकराव से प्रभावित विकासशील देश, वे सभी भारत पर पूरा भरोसा करते हैं और इस समय यदि कोई देश दुनिया में स्थायित्व एवं शांति लाने में सबसे सार्थक भूमिका निभा सकता हैं तो वह भारत ही हैं।

    जी-20 के लोेगो में भारत के राष्ट्रीय पुष्प कमल को जगह दी गई हैं, जो कठिन समय में वृद्धि और लचीलेपन का प्रतीक हैं। लोगो में ग्लोब पृथ्वी का प्रतीक हैं, जो भारत के पृथ्वी-हितैषी दृष्टिकोण का द्योतक हैं। एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य के मंत्र का आहृवान किया। उन्होंने इसके पीछे की संकल्पना का भी उल्लेख किया कोई विकसित दुनिया और कोई तीसरी दुनिया नहींऔर ‘एक विश्व’ को कहने का यही आशय हैं कि समूची मानवता ‘एक परिवार’ के रूप में साझा समृद्धि करे और अशक्त पक्ष को समान विकास एवं ‘एक भविष्य’ के लिए सहारा देकर सशक्त बनाया जाए। लोगो और थीम जी-20 में भारत के नेतृत्व के मर्म को प्रदर्शित करते हैं कि वह निर्विवाद रूप से एकजुट करने वाला शांतिदूत हैं।

    भारत इस संगठन के जरिये ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ का संदेश देना चाहता हैं। इसमें वैश्विक कल्याण और विश्व शांति की अपेक्षा की गई हैं। यही वजह हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में विश्व को शांति की ओर बढ़ने का आहृवान किया। उन्होंने ऊर्जा के क्षेत्र में स्थिरता हासिल करने और खाद्यान्न संकट से पार पाने की भी वकालत की। प्रधानमंत्री मोदी ने बहुपक्षवाद के समर्थक संगठनों, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं में सुधार की अनिवर्यता पर भी बल दिया।

    भारत लोकतंत्र की जननी कहलाता हैं। व्यापक परामर्श तथा आम सहमति बनाना हमारे राजनीतिक चरित्र में निहित हैं। कश्मीर से लेकर अंडमान द्वीप तक जी-20 से जुड़े 50 शहरों में, 200 से ज्यादा कार्यक्रमों का आयोजन देश को विश्व कल्याण के कर्तव्य पथ पर जागरूक बनाए रखेगा। इनमें सिविल सोसायटी, छात्रों और महिलाओं की सहभागिता बढ़ाने के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। इन बैठकों में हिस्सा लेने के लिए आने वाले हजारों वैश्विक प्रतिनिधियों के लिए सीधे भारत के लोगों से मिलने का यह पहला अनुभव होगा। जी-20 की सदस्यता एवं इसकी अध्यक्षता के महत्त्व को समझाने के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी ने जन-भागीदारी का आहृवान किया हैं। इससे जी-20 मात्र अधिकारियों व नीति निर्माताओं नहीं बल्कि आम जन से जुड़ा सहयोग संगठन बन सकेगा।

    वहीं, जी-20 के सदस्य देशों और गैर-सदस्यों के साथ सैंकड़ksa बैठकों का संचालन वैश्विक शासन के डगमगाते कदमों को स्थिर करेगा। स्पष्ट हैं कि भारत के सर्वस्पर्शी और सर्वसमावेशी व्यक्तित्व की एक बड़ी परीक्षा जी-20 की मेजबानी करते समय होगी। मोदी सरकार ने भारत को विश्व की ‘अग्रणी शक्ति’ के रूप में बदलने का संकल्प लिया हैं। इस स्वप्न को साकार करने की यात्रा में जी-20 की अध्यक्षता मील का पत्थर हैं।

    प्रधानमंत्री मोदी ने देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर इस आयोजन को देश के लिए एक बहुत बड़ा अवसर बताया और कहा कि यह 130 करोड़ भारतीयों की शक्ति व सामर्थ्य का प्रतीक हैं। प्रधानमंत्री ने आजादी के बाद देश के विकास में सभी सरकारों व लोगों के योगदान को सराहा और कहा कि भविष्य की राह हमें और ज्यादा ऊर्जा के साथ पूरी करनी हैं।

    प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत में जी-20 की बैठक तब हो रही हैं, जब पूरी दुनिया में अनिश्चितता और संकट का माहौल हैं। सदियों में एक बार होनी वाली महामारी से दुनिया अभी उबर रही हैं और कई तरह के संकट व आर्थिक अनिश्चितता भी कायम हैं। यह भारत की जिम्मेदारी हैं कि वह अपनी हजारों वर्ष की संस्कृति की बौद्धिकता और आधुनिकता से दुनिया को परिचित कराए। भारत की यात्रा हजारों वर्षों की हैं, जिसमें उसने वैभव भी देखा हैं और सदियों की गुलामी भी देखी हैं। जी-20 की बैठक एक अवसर हैं, जहां हम भारत की पंरपरा और ज्ञान को दुनिया को दिखा सकते हैं।

    जी-20 के अध्यक्ष पद के लिए भारत की सोच वैश्विक मंच पर नेतृत्व की भूमिका निभाने के प्रधानमंत्री के मिशन के अनुरूप हैं। इससे देश में बदलाव, स्थिरता और अर्थव्यवस्था के उत्तरोत्तर विकास को बल मिलेगा। वसुधैव कुटुम्बम (दुनिया एक परिवार हैं) के लोकाचार के दायरे में प्रधानमंत्री मोदी जी-20 के लिए तैयारियों में जुटे हैं।

    जी-20 के मंच पर नेताओं के बीच व्यापार, तकनीक और आपूर्ति श्रृंखला को बेहतर बनाने पर चर्चा होगी, जिसकी आवश्यकता भी हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिगड़े समीकरणों से व्यापार का तानाबाना प्रभावित हुआ हैं तो उसे पटरी पर लाना जरूरी हैं। विकसित और विकासशील देश दोनों इस संगठन के सदस्य हैं तो तकनीक का पहलू भी महत्त्वपूर्ण रहा।

    भारत की अध्यक्षता में जी-20 के माध्यम से विभिन्न बहुपक्षीय वैश्विक संगठनों को ज्यादा लोकतांत्रिक एवं समावेशी बनाना भी बड़ी प्राथमिकताओें में से एक रहेगा। वर्ल्ड बैंक ओर आइएमएफ जैसी वैश्विक वित्तीय संस्थाएं पश्चिमी देशों की झंडाबरदार के रूप में ही सामने आती हैं। इन्हें प्रासंगिक बनाए रखने के लिए जरूरी हैं कि इनमें विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व बढाया जाए। वैश्विक स्तर पर चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बीच भारत के पास मौका हैं कि बहुपक्षीय संगठनों के ढांचे में बदलाव का वाहक बने। भारत के पास मानवता केंद्रित वैश्वीकरण की पैरवी करने का अवसर हैं।

    विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के वित्त मंत्रियों में युक्रेन युद्ध को लेकर गंभीर मतभेद हैं। बैठक में अमेरिका व जी-7 देशों के उसके सहयोगी यूक्रेन पर रूस के हमले का निंदा का प्रस्ताव पारित किए जाने पर अड़े हुए थे। जबकि रूस और चीन के प्रतिनिधि इसके विरोध में थे। भारत का भी मानना था कि जी-20 के वित्त मंत्रियों की बैठक यूक्रेन युद्ध से जुड़ी बातों को उठाने का उचित मंच नहीं हैं। इन मतभेदों के चलते सभी 20 देशों की ओर से संयुक्त बयान जारी नहीं हो सका। बाद में जारी हुए सामान्य वक्तव्य में दो पैराग्राफ में यूक्रेन युद्ध का जिक्र किया गया लेकिन उस पर रूस और चीन ने असहमति जताते हुए हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया। सामान्य वक्तव्य में भारत की नीति के अनुसार अतिवादी शब्दों का इस्तेमाल करने से बचा गया हैं। लेकिन यह कहा गया हैं कि यूक्रेन युद्ध का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा हैं। सभी देशों ने यूक्रेन युद्ध को लेकर अपनी राष्ट्रीय नीति को दोहराया है लेकिन ज्यादातर देशों ने यूक्रेन में युद्ध छेड़े जाने की कड़ी निंदा की हैं। साथ ही, कर्ज के बोझ से दबे विकासशील देशों को राहत दिए जाने पर भी उनकी राय भिन्न हैं। इसके चलते जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रिय बैंको के प्रमुखों की बैठक संयुक्त बयान जारी किए बगैर समाप्त हो गई।

    भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने जी-20 देशों से वित्तीय स्थिरता के प्रति उत्पन्न होने वाले खतरों और ऋण संकट जैसी वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली चुनौतियों का दृढ़ता से समाधान करने का आहृवान किया। वहीं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा ‘‘जी-20 अपने सदस्यों की पूरक ताकतों का फायदा उठाकर दुनियाभर के लोगों की जिंदगियों को बदल सकता हैं। जिसमें देश विशेष की जरूरतों और परिस्थितियों का भी ख्याल रखा जाएगा। यह नए विचारों का पोषण कर सकता हैं।‘’

G20 meeting

    भारत को जी-20 की अध्यक्षता तब हासिल हुई हैं, जब देश महामारी के चलते बढ़ी चुनौतियों के बावजूद पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की राह पर हैं। भारतीयों के ज्ञान और उद्यमशीलता को सामने लाने के लिए प्रौद्याोगिकी भी साथ-साथ कदमताल कर रहीं हैं। भारत न सिर्फ दुनिया के सबसे बड़े वास्तविक डिजिटल लोकतंत्र के रूप में उभरा हैं, बल्कि यह डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं के विकास को भी बढ़ावा दे रहा हैं। और भारत की विशाल आबादी भी उनका उपयोग करके मूल्य बढ़ा रही है।

      भारत में डिजिटल भुगतान 2026 तक 10 ट्रिलियिन डॉलर तक पहुंच सकता हैं। उम्मीद हैं, इसकी डिजिटल अर्थव्यवस्था 2030 तक 800 अरब डॉलर को पार कर जाएगी। वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना जी-20 का अहम मकसद रहा है। जी-20 से भारत में तकनीकी विशेषज्ञता व नवाचारों के लिए निवेश बढेगा।

    जी-20 देशों ने डिजिटल इन्फ्रा पर भी चर्चा की और इस दिशा में भारत की डिजिटल भुगतान प्रणाली की सराहना की गई। भारत हाल के वर्षा में डिजिटल सुपरपावर के रूप में उभरा हैं। यहां टेक्नोलाजी के प्रयोग से सामाजिक कल्याण की कई योजनाओें का संचालन किया जा रहा हैं। अपनी इस क्षमता का लाभ लेते हुए भारत विकासशील देशों में डिजिटल टेक्नोलाजी के स्तर पर पिछड़ेपन को दूर करने में भूमिका निभा सकता हैं। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि डिजिटल टेक्नोलोजी का लाभ कुछ लोगों तक सिमटने के बजाय हर व्यक्ति तक पहुंचे। भारत के पास यूपीआइ, को-विन और फास्टैग जैसी कई उपलब्धियां हैं, जो पूरे विश्व के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकती हैं।

    वर्ष 2023 में जी-20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान शुरू किए जाने वाले स्टार्टअप-20 एंगेजमेंट ग्रुप का मकसद स्टार्टअप का समर्थन करना और स्टार्टअप, कॉरपोरेट जगत, निवेशकों, नवाचार एजेंसियों व इससे जुड़े इको-सिस्टम के अन्य प्रमुख साझेदारों के बीच तालमेल को संभव बनाना हैं। भारत का स्टार्टअप इको-सिस्टम आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा इको-सिस्टम हैं, जिसमें 107 यूनिकॉर्न, 83,000 से अधिक मान्यता प्राप्त स्टार्टअप और उनको सहयोग देने वाला तंत्र शामिल हैं, जो निरंतर विस्तार कर रहा हैं। स्टार्टअप-20 एंगेजमेंट गु्रप के माध्यम से भारत जी-20 देशों के बीच रणनीतिक सहयोग के जरिये रचनात्मक स्टार्टअप की सहायता करने के लिए एक समावेशी ढांचा विकसित करने में मदद करेगा। जी-20 देशों में से प्रत्येक देश अपने यहां स्टार्टअप इको-सिस्टम बना रहे हैं, इसलिए यह समूह स्टार्टअप के वित्त पोषण के मॉडल को संभव बनाने और विशेष रूप से वैश्विक महत्त्व के क्षेत्रों के लिए संगतपूर्ण और सह-निर्माण सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करेगा।

    जी-20 के माध्यम से भारत विकसित देशों पर क्लाइमेट फाइनेंसिंग को लेकर आगे बढ़ाने का दबाव बना सकता हैं। कॉप-27 में जलवायु परिवर्तन के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए बड़ा एलान हुआ है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं हैं। 2009 में विकसित देशों ने गरीब देशों को 100 अरब डालर सालाना देने पर सहमति जताई थी। लेकिन 2020 तक भी इस मद में पूरा पैसा नहीं दिया गया। भारत जी-20 के सदस्य अमीर देशों को इस दिशा में बढने के लिए सहमत कर सकता हैं। भारत के नेतृत्व में विकासशील देश क्लाइमेट फाइनेंसिंग से जुड़ी चर्चाओं में ज्यादा अहम भूमिका निभाने में सक्षम हो सकेंगे।

    जी-20 की अध्यक्षता भारत के लिए निेवेश आकर्षित करने का मौका भी हैं इस अध्यक्षता के दौरान बड़ी संख्या में निवेशक, पर्यटक, राजनयिक, नीति निर्माता एवं राष्ट्र प्रमुख भारत आएंगे। जी-20 की बैठकों के माध्यम से राज्यों के पास अपनी क्षमता प्रदर्शित करने और निवेश आकर्षित करने का अवसर होगा। साथ ही, आर्थिक विकास गति को फिर से तेज करने, खाद्य व ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और डिजिटल ट्रांसफरमेशन जैसे मुद्दों को उठाने की बात कही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में राज्यों के मुख्यमंत्रियों से  चर्चा में इसकी महत्ता का उल्लेख किया था।

    भारत ने जी-20 की अध्यक्षता संभाल ली हैं। ऐसे मे, जी-20 शिखर सम्मेलनों में भारत के पास वैश्विक मुद्दों पर रचनात्मक और समावेशी ढंग से अहमियत जताने का मौका होगा। भारत का जी-20 एजेंडा समावेशी महत्त्वकांक्षी, कार्रवाई-उन्मुख और निर्णायक होगा। अर्थव्यवस्थाओं के नेता वृहद आर्थिक नीतियों में समन्वय लाने पर एकमत होंगें, ताकि विकास में सहयोग मिल सके और समावेशी विकास संभव हो सके। इससे असमानता और गरीबी उन्मूलन में मदद मिले सके। आर्थिक से लेकर सामाजिक मोर्चे तक यह दुनिया का सबसे शक्तिशाली समूह हैं। अगले एक साल तक भारत इस समूह की कमान संभालेगा और इसकी बैठकों के एजेंडें में भारत की भूमिका रहेगी। इससे निस्संदेह, वैश्विक स्तर पर भारत की धाक बढेगी।

       निष्कर्ष जिस तरह से पीएम मोदी एक वैश्विक नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं और विश्व में भारत की साख मजबूत हुई हैं। उसे देखते हुए जी-20 अध्यक्षता एक अहम पड़ाव सिद्ध होगी। फिर भी, जी-20 में दो धुरियों के बीच समन्वय भारत की बड़ी चुनौती हैं। इन देशों के बीच सामंजस्य बिठाने के लिए भारतीय दल को बहुत ही जबरदस्त कूटनीतिक क्षमता दिखानी होगी। अभी तक जो संकेत हैं उससे ऐसा लग रहा हैं कि जिस तरह से जी-20 के वित्त मंत्रियों की बैठक के बाद कोई संयुक्त बयान जारी नहीं किया जा सका फिर भी अमेरिका एवं अपनी व्यक्तिगत छवि और राजनीतिक प्रतीकात्मकता के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-20 में अपनी छाप छोड़ने में सफल होंगे।

 

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